किस तरह गुजरी ये शब्-ए-ख़याल,क्या पता
हाय!क्यों तडपा गया उनका जमाल,क्या पता
इब्तिदा-ए-इश्क समझे इसे,या फिर ख्वाब कोई
क्यों सता रहा है मुझको ये सवाल,क्या पता
Thursday, December 31, 2009
Saturday, December 19, 2009
जिंदगी के लिये
यु न उठता है दर्द यहाँ हर किसी के लिये
ये दिल भी धड़कता फकत उसी के लिये
जिसके अहसास में है खुशबू जिंदगी की
वोही होता है अपना इस जिंदगी के लिये
ये दिल भी धड़कता फकत उसी के लिये
जिसके अहसास में है खुशबू जिंदगी की
वोही होता है अपना इस जिंदगी के लिये
Friday, December 18, 2009
वो जुदा होते रहे
सामने इन निगाहों के तेरे साये जुदा होते रहे
हसरतो की बाग़ में खिले ख्वाब बस रोते रहे
कश्तियां मोहब्बत की दूर ही रही किनारों से
हम भी अपनी जिंदगी आसुओ में डुबोते रहे
हसरतो की बाग़ में खिले ख्वाब बस रोते रहे
कश्तियां मोहब्बत की दूर ही रही किनारों से
हम भी अपनी जिंदगी आसुओ में डुबोते रहे
Thursday, December 17, 2009
सवेरा हो गया
बेहोश कर दिया खुलती जुल्फ ने किसीकी
इन अंधेरो में भी जैसे एक सवेरा हो गया
आसमाँ तक भरी उड़ान अपनी हसरतो ने
जन्नत में अब जिंदगी का बसेरा हो गया
इन अंधेरो में भी जैसे एक सवेरा हो गया
आसमाँ तक भरी उड़ान अपनी हसरतो ने
जन्नत में अब जिंदगी का बसेरा हो गया
हमे आजमाओ तुम
ऐसे ही तुम शरमाते रहो और मुस्कुराते रहो
गौहर अपनी हया के फजा में बिखराते रहो
सबूत हमने भी दिये है कितने दीवानगी के
खुदा के लिये हमे और तुम आजमाते रहो
गौहर अपनी हया के फजा में बिखराते रहो
सबूत हमने भी दिये है कितने दीवानगी के
खुदा के लिये हमे और तुम आजमाते रहो
Monday, December 7, 2009
कामयाबी है सबकुछ
चलते रहे हम,जब तक न कोई मकां मिले
है मजा और भी,गर साथ कोई कारवां मिले
पोहोचना मंजिल पे है मगर सबकुछ यहाँ
चाहे साथ रहे कोई,या फ़िर वो तनहा मिले
है मजा और भी,गर साथ कोई कारवां मिले
पोहोचना मंजिल पे है मगर सबकुछ यहाँ
चाहे साथ रहे कोई,या फ़िर वो तनहा मिले
Thursday, December 3, 2009
...कुछ और था
जो आग थी सीने में,उसका नाम कुछ और था
कल तक उनकी निगाहों का,पैगाम कुछ और था
दुखता था कभी ये दिल,तो सम्हाल लेते थे वो
दर्द भूल जाने का वो इन्तेजाम कुछ और था
सितम भी आसां बन जाते थे,पहलु में उनके
उस दामन की खुशबू का निजाम कुछ और था
मुकम्मल होता सफर,जो तेरे दर तक आ जाते
पोहचे मगर जहा तक वो मकाम कुछ और था
क्या से क्या हो गया है तेरे अफ़साने का 'ठाकुर'
जो सोचा था तुने वो शायद अंजाम कुछ और था
कल तक उनकी निगाहों का,पैगाम कुछ और था
दुखता था कभी ये दिल,तो सम्हाल लेते थे वो
दर्द भूल जाने का वो इन्तेजाम कुछ और था
सितम भी आसां बन जाते थे,पहलु में उनके
उस दामन की खुशबू का निजाम कुछ और था
मुकम्मल होता सफर,जो तेरे दर तक आ जाते
पोहचे मगर जहा तक वो मकाम कुछ और था
क्या से क्या हो गया है तेरे अफ़साने का 'ठाकुर'
जो सोचा था तुने वो शायद अंजाम कुछ और था
Saturday, November 14, 2009
...क्यों नही
क्या करू मैं अब कोई समझाता क्यों नहीहाय!ये दर्द सीने से आख़िर जाता क्यों नही
मिलके इतने सारे पैमाने,दिल बहला न सकेऐ साकी तू थोडी और मुझे पिलाता क्यों नही
कब से भटक रहा हूं मैं,इस गली से उस गलीमेहमाँ जान के मुझको,कोई घर बुलाता क्यों नहीअँधियारा मायूसी का बढ़के है इन रातो सेकोई आके चराग़ दिल में जलाता क्यों नही
है आरज़ू के झेल जाऊ इक ज़ख्म आखरी ऐ खुदा तू तीर-ऐ-कज़ा चलाता क्यों नही
कितनी राते बितायी तुने,याद में जिन की 'ठाकुर'
उनको मगर कभी तू याद आता क्यों नही
मिलके इतने सारे पैमाने,दिल बहला न सकेऐ साकी तू थोडी और मुझे पिलाता क्यों नही
कब से भटक रहा हूं मैं,इस गली से उस गलीमेहमाँ जान के मुझको,कोई घर बुलाता क्यों नहीअँधियारा मायूसी का बढ़के है इन रातो सेकोई आके चराग़ दिल में जलाता क्यों नही
है आरज़ू के झेल जाऊ इक ज़ख्म आखरी ऐ खुदा तू तीर-ऐ-कज़ा चलाता क्यों नही
कितनी राते बितायी तुने,याद में जिन की 'ठाकुर'
उनको मगर कभी तू याद आता क्यों नही
Tuesday, November 10, 2009
...क्यों होने लगा
तेरा खयाल और ये इज्तराब क्यों होने लगा
छुपाया हुवा वो दर्द बे-नकाब क्यों होने लगा
है इल्म-ऐ-वजूद मुझको आसमाँ के चाँद का
फ़िर ख्वाब में वो रुख माहताब क्यों होने लगा
महफिल में और भी है यहाँ दिल को लुभानेवाले
मेरी नजरो को तेरा इन्तेख्वाब क्यों होने लगा
यु तो अपनी ही धुन में जीते रहे हम आजतक
अपनी हस्ती पे कोई कामयाब क्यों होने लगा
तू लाख करे इन्कार इस छुपी उल्फत का 'ठाकुर'
रातो का आलम फ़िर बेख्वाब क्यों होने लगा
इज्तेराब-बेचैनी,इन्तेख्वाब-चुनाव
बेख्वाबी-नींद न आना
छुपाया हुवा वो दर्द बे-नकाब क्यों होने लगा
है इल्म-ऐ-वजूद मुझको आसमाँ के चाँद का
फ़िर ख्वाब में वो रुख माहताब क्यों होने लगा
महफिल में और भी है यहाँ दिल को लुभानेवाले
मेरी नजरो को तेरा इन्तेख्वाब क्यों होने लगा
यु तो अपनी ही धुन में जीते रहे हम आजतक
अपनी हस्ती पे कोई कामयाब क्यों होने लगा
तू लाख करे इन्कार इस छुपी उल्फत का 'ठाकुर'
रातो का आलम फ़िर बेख्वाब क्यों होने लगा
इज्तेराब-बेचैनी,इन्तेख्वाब-चुनाव
बेख्वाबी-नींद न आना
Saturday, November 7, 2009
दूर भी तो नही
नही है जो तू सामने मेरे,मगर दूर भी तो नही
इस दिल को सिवा तेरे,कोई मंजूर भी तो नही
रख के हाथ दिल पे,सोचता हूँ कुछ बहल जाऊ
धडकनों के सिवा और कोई,सुरूर भी तो नही
बिता देंगे जहाँ-ऐ-इश्क में,तमाम उम्र अपनी
जीते जी लौट जाना,यहाँ का दस्तूर भी तो नही
नही थी जो नीयत तेरी,विसाल-ऐ-यार हो जाए
वरना ऐ खुदा तू इस कदर,मजबूर भी तो नही
क्यों ऐसी निगाह से देखता है जमाना तुझको 'ठाकुर'
इश्क में लूट जाना फ़िर तेरा कसूर भी तो नही
इस दिल को सिवा तेरे,कोई मंजूर भी तो नही
रख के हाथ दिल पे,सोचता हूँ कुछ बहल जाऊ
धडकनों के सिवा और कोई,सुरूर भी तो नही
बिता देंगे जहाँ-ऐ-इश्क में,तमाम उम्र अपनी
जीते जी लौट जाना,यहाँ का दस्तूर भी तो नही
नही थी जो नीयत तेरी,विसाल-ऐ-यार हो जाए
वरना ऐ खुदा तू इस कदर,मजबूर भी तो नही
क्यों ऐसी निगाह से देखता है जमाना तुझको 'ठाकुर'
इश्क में लूट जाना फ़िर तेरा कसूर भी तो नही
Friday, October 23, 2009
..बहाना ढूंढ़ लिया
कुछ रोज गुजारने की खातिर,एक आशियाना ढूंढ़ लिया
ता-उम्र होश में न आ सकू,ऐसा एक मयखाना ढूंढ़ लिया
क्या मालूम था मुझे,के होगी झूठी वो महफिले अपनी
अब आयी अक्ल,के जीने की खातिर वीराना ढूंढ़ लिया
पूछेगा गर खुदा मुझको,लाये क्या हो उस जहा से तुम
कर दूंगा नजर ये दिल टुटा,ऐसा एक नजराना ढूंढ़ लिया
मिलती नही जो इस दुनिया में,एक पहचान अब मुझको
अक्स जो देखा शीशे में अपना,के कोई बेगाना ढूंढ़ लिया
अपनी सूरत-ऐ-हाल पे 'ठाकुर'हसता है ये सारा जमाना
हम भी समझेंगे के लोगो ने,हसने का बहाना ढूंढ़ लिया
ता-उम्र होश में न आ सकू,ऐसा एक मयखाना ढूंढ़ लिया
क्या मालूम था मुझे,के होगी झूठी वो महफिले अपनी
अब आयी अक्ल,के जीने की खातिर वीराना ढूंढ़ लिया
पूछेगा गर खुदा मुझको,लाये क्या हो उस जहा से तुम
कर दूंगा नजर ये दिल टुटा,ऐसा एक नजराना ढूंढ़ लिया
मिलती नही जो इस दुनिया में,एक पहचान अब मुझको
अक्स जो देखा शीशे में अपना,के कोई बेगाना ढूंढ़ लिया
अपनी सूरत-ऐ-हाल पे 'ठाकुर'हसता है ये सारा जमाना
हम भी समझेंगे के लोगो ने,हसने का बहाना ढूंढ़ लिया
Saturday, October 17, 2009
तेरी खामोशियों ने...
तेरी खामोशियों ने एक शोर मचाके रखा है
कैसी मजबूरियों का जाल बिछाके रखा है
किस्मत थी अपनी,जो गये हम दोनों जहा से
जहा न रुकना था मुझे,वही पे बिठा के रखा है
है कसूर तेरा,नजर आता नही धुवाँ तुझको
वरना तेरे सामने दिल हमने जलाके रखा है
खिले गुंचे वही,खाक हुवी थी जहा अपनी हस्ती
शगूफा उन्ही गुलो का,तेरी राह में सजाके रखा है
जानते है 'ठाकुर' पास आ के तुम कहोगे कभी
जिस राज-ऐ-दिल को तुमने छुपा के रखा है
कैसी मजबूरियों का जाल बिछाके रखा है
किस्मत थी अपनी,जो गये हम दोनों जहा से
जहा न रुकना था मुझे,वही पे बिठा के रखा है
है कसूर तेरा,नजर आता नही धुवाँ तुझको
वरना तेरे सामने दिल हमने जलाके रखा है
खिले गुंचे वही,खाक हुवी थी जहा अपनी हस्ती
शगूफा उन्ही गुलो का,तेरी राह में सजाके रखा है
जानते है 'ठाकुर' पास आ के तुम कहोगे कभी
जिस राज-ऐ-दिल को तुमने छुपा के रखा है
Friday, October 9, 2009
जिंदगी-एक सजा
टूटे से दिल पे क्या असर,शाद ओ नाशाद का
इन टुकडो में कैसा बसर,आख़िर जज्बात का
रंग ज़माने के देख लिए,और देखने को रहा क्या
बुझी सी जिंदगी को क्या फर्क, नूर ओ जुल्मात का
मिजाज पुर्सी करता है कोई,तो वो है अच्छाई उसकी
वरना क्या अफसाना करू बयाँ,मैं बिगड़ते हालात का
टूटी तकदीर रंज-ओ-गम तनहाई और अफ़सोस
कैसे शुक्रिया अदा करू,जिंदगी की इस सौगात का
'ठाकुर'शायद और न रोये,लेकिन मुस्कुरा भी न पाएंगे
खामोशी में बस गुजारते जायेंगे,वक्त अपने हयात का
शाद-खुश,रंज-गम
जुल्मात-अँधेरा,नाशाद-दुखी
इन टुकडो में कैसा बसर,आख़िर जज्बात का
रंग ज़माने के देख लिए,और देखने को रहा क्या
बुझी सी जिंदगी को क्या फर्क, नूर ओ जुल्मात का
मिजाज पुर्सी करता है कोई,तो वो है अच्छाई उसकी
वरना क्या अफसाना करू बयाँ,मैं बिगड़ते हालात का
टूटी तकदीर रंज-ओ-गम तनहाई और अफ़सोस
कैसे शुक्रिया अदा करू,जिंदगी की इस सौगात का
'ठाकुर'शायद और न रोये,लेकिन मुस्कुरा भी न पाएंगे
खामोशी में बस गुजारते जायेंगे,वक्त अपने हयात का
शाद-खुश,रंज-गम
जुल्मात-अँधेरा,नाशाद-दुखी
Sunday, October 4, 2009
अनचाही जिंदगी
दो बूंद चैन की नही मिलती,दुनिया के मैखाने में
किन किन गलियों से गुजर चुका हूँ,मैं अन्जाने में
गैरो से शिकवा कैसा,दुसरो से शिकायत कैसी
आख़िर अपने ही लगे है जब,मुझको मिटाने में
जिनकी खातिर गुजरी है,अब तक ये मेरी जिंदगी
झिझक क्यों होती है उन्हे,अब मेरा साथ निभाने में
कैसे बस पायेगी ये बस्तिया,अपने अरमानो की
तकदीर ख़ुद रहती है मसरूफ,इनको जलाने में
इतना उब चुका है 'ठाकुर' दुनिया की तंगदिली से
तुम भी देर क्यों करते हो खुदा,मुझे यहाँ से उठाने में
किन किन गलियों से गुजर चुका हूँ,मैं अन्जाने में
गैरो से शिकवा कैसा,दुसरो से शिकायत कैसी
आख़िर अपने ही लगे है जब,मुझको मिटाने में
जिनकी खातिर गुजरी है,अब तक ये मेरी जिंदगी
झिझक क्यों होती है उन्हे,अब मेरा साथ निभाने में
कैसे बस पायेगी ये बस्तिया,अपने अरमानो की
तकदीर ख़ुद रहती है मसरूफ,इनको जलाने में
इतना उब चुका है 'ठाकुर' दुनिया की तंगदिली से
तुम भी देर क्यों करते हो खुदा,मुझे यहाँ से उठाने में
बेताबी
न हटाइयें चिल्मन,दिल पे इख्तियार नही है
अब और कोई आपसा,यहाँ पे सरकार नही है
कबसे जलाये बैठे हो शम्मा,तुम सनमखाने की
कहोगे कैसे तुम्हे भी किसीका,इंतजार नही है
लिपटी है जुल्फ से कलिया,गर्म रुखसारो की
उन्हें भी शायद मुझपे,इतना ऐतबार नही है
शोर क्यों उठ रहा है यहाँ,तुम्हारी धडकनों का
अब न कहना के दिल तुम्हारा बेकरार नही है
हर अदा को तुम्हारी देख चुके है 'ठाकुर' यहाँ
परदा तो आख़िर परदा है,कोई दीवार नही है
अब और कोई आपसा,यहाँ पे सरकार नही है
कबसे जलाये बैठे हो शम्मा,तुम सनमखाने की
कहोगे कैसे तुम्हे भी किसीका,इंतजार नही है
लिपटी है जुल्फ से कलिया,गर्म रुखसारो की
उन्हें भी शायद मुझपे,इतना ऐतबार नही है
शोर क्यों उठ रहा है यहाँ,तुम्हारी धडकनों का
अब न कहना के दिल तुम्हारा बेकरार नही है
हर अदा को तुम्हारी देख चुके है 'ठाकुर' यहाँ
परदा तो आख़िर परदा है,कोई दीवार नही है
Wednesday, September 30, 2009
खामोशी
कुछ और न कही जाये,कुछ और न सुनी जाये
जो बात है जहा,बस अब वही तक रखी जाये
न हो अदावत किसी से,न दोस्ती की उम्मीद
कहा जाती है फ़िर जिंदगी,ये बस देखी जाये
जो बात है जहा,बस अब वही तक रखी जाये
न हो अदावत किसी से,न दोस्ती की उम्मीद
कहा जाती है फ़िर जिंदगी,ये बस देखी जाये
Friday, September 25, 2009
ऐ रूठे हुवे दोस्त
ये शक ये शुबा ये बदगुमानी किस लिए
तेरे चेहरे पे ऐ यार ये परेशानी किस लिए
कर दिये है जो तुने दर्द सारे मेरे नाम पर
फ़िर पसीने से तर ये पेशानी किस लिए
और भी कुछ हो सकती है बाते दिल्लगी की
जुबा पे तेरे शिकवो की कहानी किस लिए
जाते है जो रूठ के,लौट आना होता ही है उनको
है इल्म इस बात का,तो ये नादानी किस लिए
तुम को मनाके थक चुके है 'ठाकुर'अब इतना
तेरे बगैर समझेंगे के ये जिंदगानी किस लिए
तेरे चेहरे पे ऐ यार ये परेशानी किस लिए
कर दिये है जो तुने दर्द सारे मेरे नाम पर
फ़िर पसीने से तर ये पेशानी किस लिए
और भी कुछ हो सकती है बाते दिल्लगी की
जुबा पे तेरे शिकवो की कहानी किस लिए
जाते है जो रूठ के,लौट आना होता ही है उनको
है इल्म इस बात का,तो ये नादानी किस लिए
तुम को मनाके थक चुके है 'ठाकुर'अब इतना
तेरे बगैर समझेंगे के ये जिंदगानी किस लिए
Saturday, September 19, 2009
...मारा मुझको
वो तबस्सुम वो हया,इन अदाओ ने मारा मुझको
छुपके से उनको देखा,इन गुनाहों ने मारा मुझको
लहराते आँचल ने छेड़ ही दिया,साज-ऐ-दिल मेरा
करके शरारत जो बह गई,उन हवाओ ने मारा मुझको
देख के ख़ुद को आईने में,वो सज़ते रहे सवरते रहे
दिल थामके जो भरी शीशे ने,उन आहो ने मारा मुझको
जुल्फ खुली तो रुक गई,गर्दिश ज़मीं आसमानों की
खाके रश्क जो चली गई,उन घटाओ ने मारा मुझको
शरमाके के करते है वो परदा,और देखते है चुपके से भी
सम्हाल दिल ऐ 'ठाकुर',इन शोख वफाओ ने मारा मुझको
शर्म भी है
छुपके से उनको देखा,इन गुनाहों ने मारा मुझको
लहराते आँचल ने छेड़ ही दिया,साज-ऐ-दिल मेरा
करके शरारत जो बह गई,उन हवाओ ने मारा मुझको
देख के ख़ुद को आईने में,वो सज़ते रहे सवरते रहे
दिल थामके जो भरी शीशे ने,उन आहो ने मारा मुझको
जुल्फ खुली तो रुक गई,गर्दिश ज़मीं आसमानों की
खाके रश्क जो चली गई,उन घटाओ ने मारा मुझको
शरमाके के करते है वो परदा,और देखते है चुपके से भी
सम्हाल दिल ऐ 'ठाकुर',इन शोख वफाओ ने मारा मुझको
शर्म भी है
Saturday, September 5, 2009
नजर नही आता
कम होता मुझे उनका इन्तेजार नजर नही आता
इस जिंदगी में कही मुझको करार नजर नही आता
खूब वाकिफ है ये जमाना मेरी तड़पती जिंदगानी से
उन्हें ही सिर्फ़ मेरा दिल-ऐ-बेकरार नजर नही आता
मर्ज कैसा ये लगा दिया खुदा इस खामोश जिंदगी को
मुझे अब मुझसे बढ़के कोई बीमार नजर नही आता
क्या मालूम कबूल हो पायेगी दुवा कभी इस दिल की
खुदा तेरी आँखों में रहम का आसार नजर नही आता
गम-ऐ-दिल को बनाके हमसफ़र कही चल दे ऐ 'ठाकुर'
राह-ऐ-जिंदगी में और कोई दिलदार नजर नही आता
इस जिंदगी में कही मुझको करार नजर नही आता
खूब वाकिफ है ये जमाना मेरी तड़पती जिंदगानी से
उन्हें ही सिर्फ़ मेरा दिल-ऐ-बेकरार नजर नही आता
मर्ज कैसा ये लगा दिया खुदा इस खामोश जिंदगी को
मुझे अब मुझसे बढ़के कोई बीमार नजर नही आता
क्या मालूम कबूल हो पायेगी दुवा कभी इस दिल की
खुदा तेरी आँखों में रहम का आसार नजर नही आता
गम-ऐ-दिल को बनाके हमसफ़र कही चल दे ऐ 'ठाकुर'
राह-ऐ-जिंदगी में और कोई दिलदार नजर नही आता
Saturday, August 29, 2009
बेमिसाल हुस्न
फूल तुझसा न होगा कोई,जन्नत के गुलजारो में भी
उधर झलकती होगी परेशानी,खुदा के इशारो में भी
सितारे शक करते है,ये चाँद फलक पे कौन सा है
कोई और चाँद नजर आता है,जमी के नजारों में भी
कुछ पल रुक के सीखी है,शोखी तेरी अंगडाईयो से
जाके तब आई है रवानी,नदी की उदास धारों में भी
पयाम पंहुचा रहा है भवरा,इस कली से उस कली
बस चर्चे है आजकल,तेरे नाम के बहारो में भी
क्यों न समझे खुशनसीब,आख़िर ख़ुद को 'ठाकुर'
नाम अपना आया है अब तो,इश्क के मारो में भी
उधर झलकती होगी परेशानी,खुदा के इशारो में भी
सितारे शक करते है,ये चाँद फलक पे कौन सा है
कोई और चाँद नजर आता है,जमी के नजारों में भी
कुछ पल रुक के सीखी है,शोखी तेरी अंगडाईयो से
जाके तब आई है रवानी,नदी की उदास धारों में भी
पयाम पंहुचा रहा है भवरा,इस कली से उस कली
बस चर्चे है आजकल,तेरे नाम के बहारो में भी
क्यों न समझे खुशनसीब,आख़िर ख़ुद को 'ठाकुर'
नाम अपना आया है अब तो,इश्क के मारो में भी
Thursday, August 27, 2009
मेरे नाम का नही
गुलिस्ता है ये जहाँ,मगर कोई गुल मेरे नाम का नही
मुझसे है दुनिया को वास्ता,पर कोई मेरे काम का नही
लम्हा लम्हा मिलके बनती है ज़ंजीर-ऐ-वक्त यहाँ
एक लम्हा भी अपनी ज़िंदगी में आराम का नही
चढ़ते आफताब को सलाम करना,जाने ये ज़माना
मगर मैं जानू इतना,के कोई ढलती शाम का नही
नजर आया दूर से ही,कोई चराग-ऐ-नूर अफ़्शा वहाँ
पोहचे नज़दीक तो जाना,ये नूर मेरे मकाम का नही
मैखाने होकर आए 'ठाकुर' फ़िर भी गमगीन ही रहे
क्या जाने,अब वो पहलेसा असर,किसी जाम का नही
नूर अफ़्शा -प्रकाश फैलानेवाला
मुझसे है दुनिया को वास्ता,पर कोई मेरे काम का नही
लम्हा लम्हा मिलके बनती है ज़ंजीर-ऐ-वक्त यहाँ
एक लम्हा भी अपनी ज़िंदगी में आराम का नही
चढ़ते आफताब को सलाम करना,जाने ये ज़माना
मगर मैं जानू इतना,के कोई ढलती शाम का नही
नजर आया दूर से ही,कोई चराग-ऐ-नूर अफ़्शा वहाँ
पोहचे नज़दीक तो जाना,ये नूर मेरे मकाम का नही
मैखाने होकर आए 'ठाकुर' फ़िर भी गमगीन ही रहे
क्या जाने,अब वो पहलेसा असर,किसी जाम का नही
नूर अफ़्शा -प्रकाश फैलानेवाला
Sunday, August 16, 2009
अनमिट मोहब्बत
ऐ शम्मा!तुझसे लिपट के मरे तो भी क्या
आख़िर तेरे कदमो में ही मुझे गिर जाना है
जीते जी ना सही,तो मरने के बाद ही सही
सामने तेरे सर झुकाने का ये एक बहाना है
आख़िर तेरे कदमो में ही मुझे गिर जाना है
जीते जी ना सही,तो मरने के बाद ही सही
सामने तेरे सर झुकाने का ये एक बहाना है
Wednesday, July 29, 2009
बेचैन जिंदगी
गमो का साथ भी हमने निभा के देख लिया
अपनी हसरतो को कुछ बुझा के देख लिया
सुकू कही भी हासिल नही होता हमे यहाँ पर
ज़िंदगी को हर मुमकिन आज़मा के देख लिया
अपनी हसरतो को कुछ बुझा के देख लिया
सुकू कही भी हासिल नही होता हमे यहाँ पर
ज़िंदगी को हर मुमकिन आज़मा के देख लिया
Monday, July 27, 2009
खोया मयखाना
उनके ख़याल में खोती थी सुबह शाम अपनी
कोई भी याद न बची लेकिन आज भुलाने को
बेवफाई के तुफाँ ने उडा दिया मयखाना मेरा
एक बूंद भी अब मिलती नही पिने पिलाने को
कोई भी याद न बची लेकिन आज भुलाने को
बेवफाई के तुफाँ ने उडा दिया मयखाना मेरा
एक बूंद भी अब मिलती नही पिने पिलाने को
Sunday, July 26, 2009
तेरा सहारा भी नही....
शीशे ने मुझको अक्स मेरे दिखाए झूठे
काश तेरी निगाह में देख लेता ख़ुद को
तुम भी तो लेकिन आखे चुराए बैठे हो
पाउ कैसे अब मेरे खोये हुवे वजूद को
काश तेरी निगाह में देख लेता ख़ुद को
तुम भी तो लेकिन आखे चुराए बैठे हो
पाउ कैसे अब मेरे खोये हुवे वजूद को
Monday, June 29, 2009
तलाश
जलवों की धुप है लेकिन,वो उल्फत के साये कहा है
थाम सके जो जिंदगी मेरी,वो नाजुक सी बाहे कहा है
अपनी नजरो ने तो देखे है,दुनिया के रंगीन नज़ारे
अक्स अपना देख सकू जिसमे,वो निगाहे कहा है
थाम सके जो जिंदगी मेरी,वो नाजुक सी बाहे कहा है
अपनी नजरो ने तो देखे है,दुनिया के रंगीन नज़ारे
अक्स अपना देख सकू जिसमे,वो निगाहे कहा है
Saturday, June 27, 2009
....नूर अफ्शां है
नाम-ऐ-मोहब्बत पे दिल आज भी फरमा-ऐ-सजदा है
दिल-ऐ-शिकस्ता में आज भी और टूटने का जज्बा है
कौन कहता है अंधेरे होते है चिराग के टूट जाने से
बुझके भी शमा-ऐ-इश्क मेरी,आज भी नूर अफ्शां है
फरमा-ऐ-सजदा-सर झुकानेवाला
नूर अफ्शां -रोशनी फैलानेवाली
दिल-ऐ-शिकस्ता में आज भी और टूटने का जज्बा है
कौन कहता है अंधेरे होते है चिराग के टूट जाने से
बुझके भी शमा-ऐ-इश्क मेरी,आज भी नूर अफ्शां है
फरमा-ऐ-सजदा-सर झुकानेवाला
नूर अफ्शां -रोशनी फैलानेवाली
Monday, June 22, 2009
मोहब्बत
तेरे ख्वाब में रात गुजरी,सुबह आयी तो हसरत हुवी
दिल के बदले में दिल गया,क्या खूब ये तिजारत हुवी
एक दर्द मीठा सा कैद हो चला है दिल के आगोश में
करवट बदली हालात ने,जो मुझे उनसे मोहब्बत हुवी
दिल के बदले में दिल गया,क्या खूब ये तिजारत हुवी
एक दर्द मीठा सा कैद हो चला है दिल के आगोश में
करवट बदली हालात ने,जो मुझे उनसे मोहब्बत हुवी
Thursday, May 28, 2009
ना कही के रहे
ना मौत मिली हमें,ना हम जिंदगी के रहे
ना आसमाँ पे पोहचे,ना हम जमी के रहे
ना उनको पाया और ना ही उन्हें भूल सके
मोहब्बत में आख़िर,ना हम कही के रहे
ना आसमाँ पे पोहचे,ना हम जमी के रहे
ना उनको पाया और ना ही उन्हें भूल सके
मोहब्बत में आख़िर,ना हम कही के रहे
Wednesday, May 27, 2009
अब तो चली आ
जजबातों का है इस दिल पे जोर,अब तो चली आ
तड़प का आलम है चारो और,अब तो चली आ
सहा नही जाता धडकनों का शोर,अब तो चली आ
टूटने को है ये सासों की डोर,अब तो चली आ
तड़प का आलम है चारो और,अब तो चली आ
सहा नही जाता धडकनों का शोर,अब तो चली आ
टूटने को है ये सासों की डोर,अब तो चली आ
Sunday, May 3, 2009
Monday, April 6, 2009
दिल की चुभन
छुडाना चाहू फ़िर भी छुटता नही दामन बे-करारी का
दिल में जो है चुभे हुवे,उन काटों में फस जाता है अक्सर
दिल में जो है चुभे हुवे,उन काटों में फस जाता है अक्सर
Sunday, March 22, 2009
सुबह अपनी नही
हम जो चलते रहे,तो ये रात साथ चलती रही
हर बढ़ते कदम पर,सुबह की आस ढलती रही
दुनिया ने तो देख लिए सूरज के चढ़ते नज़ारे
खुशिया मेरी लेकिन अपनी आँख मलती रही
हर बढ़ते कदम पर,सुबह की आस ढलती रही
दुनिया ने तो देख लिए सूरज के चढ़ते नज़ारे
खुशिया मेरी लेकिन अपनी आँख मलती रही
Saturday, March 14, 2009
Wednesday, March 11, 2009
फक्र मोहब्बत का
है दर्द मुझको अब भी,के मेरी जिंदगी में वो नही
फक्र है फ़िर भी इतना,के मुझे उनसे मोहब्बत है
फक्र है फ़िर भी इतना,के मुझे उनसे मोहब्बत है
तड़प उम्रभर की
कैसा असर छोड़ गये वो न आ के जिंदगी में
बेख्वाबी,बेचैनी से ताल्लुक बन गया हमारा
बेख्वाबी-नींद न आना
बेख्वाबी,बेचैनी से ताल्लुक बन गया हमारा
बेख्वाबी-नींद न आना
Tuesday, March 10, 2009
दूर जाना मंजिल का...
फ़िर वोही ये दास्ताँ,फ़िर टूट जाना दिल का
दर्या के पास हो के प्यासा रह जाना साहिल का
कब तक चलेंगे यु ही सीतम अपनी किस्मत के
करीब आते आते हर पल दूर जाना मंजिल का
दर्या के पास हो के प्यासा रह जाना साहिल का
कब तक चलेंगे यु ही सीतम अपनी किस्मत के
करीब आते आते हर पल दूर जाना मंजिल का
Monday, March 9, 2009
Wednesday, February 18, 2009
ख़ुद को भुला दिया
होश में आ गए हम होश गवाने के बाद
एक कतरा भी पी न सके जाम उठाने के बाद
कुछ भी याद नही मुझे बस एक तेरे सिवा
तुझको पा लिया है मैंने खुदको भुलाने के बाद
एक कतरा भी पी न सके जाम उठाने के बाद
कुछ भी याद नही मुझे बस एक तेरे सिवा
तुझको पा लिया है मैंने खुदको भुलाने के बाद
Monday, February 16, 2009
तुम्हे भुलाऊ कैसे?
तेरे गम के पियाले होठो से लगाऊ कैसे?
शम्मा अपने इश्क की ख़ुद बुझाऊ कैसे?
कितनी हसरत से सजाये थे ख्वाब मैंने
बसाके तुम्हे अपने दिल में भुलाऊ कैसे?
शम्मा अपने इश्क की ख़ुद बुझाऊ कैसे?
कितनी हसरत से सजाये थे ख्वाब मैंने
बसाके तुम्हे अपने दिल में भुलाऊ कैसे?
Wednesday, February 11, 2009
मोहब्बत जिंदगी है
याद उनके तबस्सुम आये,तो अश्क बहने लगे
तड़प के इस दिल के जर्रे कुछ और दर्द सहने लगे
भुलाने से भूल जाये ये फलसफा-ऐ-इश्क कहाँ?
नही सिवा उनके ये जिंदगी,दिल के तार कहने लगे
तड़प के इस दिल के जर्रे कुछ और दर्द सहने लगे
भुलाने से भूल जाये ये फलसफा-ऐ-इश्क कहाँ?
नही सिवा उनके ये जिंदगी,दिल के तार कहने लगे
Monday, January 26, 2009
तू है वही
जाने क्यों लगता है मुझे,के तू है वही
तलाश जिसकी मुझको,सदियों से रही
वर्ना और भी है यहाँ दिल लुभाने वाले
जो बात तुझमे है,वो किसी और में नही
तलाश जिसकी मुझको,सदियों से रही
वर्ना और भी है यहाँ दिल लुभाने वाले
जो बात तुझमे है,वो किसी और में नही
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