ऐ शम्मा!तुझसे लिपट के मरे तो भी क्या
आख़िर तेरे कदमो में ही मुझे गिर जाना है
जीते जी ना सही,तो मरने के बाद ही सही
सामने तेरे सर झुकाने का ये एक बहाना है
Sunday, August 16, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
No comments:
Post a Comment