ऐसे ही तुम शरमाते रहो और मुस्कुराते रहो
गौहर अपनी हया के फजा में बिखराते रहो
सबूत हमने भी दिये है कितने दीवानगी के
खुदा के लिये हमे और तुम आजमाते रहो
Thursday, December 17, 2009
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This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
1 comment:
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