Friday, October 9, 2009

जिंदगी-एक सजा

टूटे से दिल पे क्या असर,शाद ओ नाशाद का
इन टुकडो में कैसा बसर,आख़िर जज्बात का

रंग ज़माने के देख लिए,और देखने को रहा क्या
बुझी सी जिंदगी को क्या फर्क, नूर ओ जुल्मात का

मिजाज पुर्सी करता है कोई,तो वो है अच्छाई उसकी
वरना क्या अफसाना करू बयाँ,मैं बिगड़ते हालात का

टूटी तकदीर रंज-ओ-गम तनहाई और अफ़सोस
कैसे शुक्रिया अदा करू,जिंदगी की इस सौगात का

'ठाकुर'शायद और न रोये,लेकिन मुस्कुरा भी न पाएंगे
खामोशी में बस गुजारते जायेंगे,वक्त अपने हयात का

शाद-खुश,रंज-गम
जुल्मात-अँधेरा,नाशाद-दुखी

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