कम होता मुझे उनका इन्तेजार नजर नही आता
इस जिंदगी में कही मुझको करार नजर नही आता
खूब वाकिफ है ये जमाना मेरी तड़पती जिंदगानी से
उन्हें ही सिर्फ़ मेरा दिल-ऐ-बेकरार नजर नही आता
मर्ज कैसा ये लगा दिया खुदा इस खामोश जिंदगी को
मुझे अब मुझसे बढ़के कोई बीमार नजर नही आता
क्या मालूम कबूल हो पायेगी दुवा कभी इस दिल की
खुदा तेरी आँखों में रहम का आसार नजर नही आता
गम-ऐ-दिल को बनाके हमसफ़र कही चल दे ऐ 'ठाकुर'
राह-ऐ-जिंदगी में और कोई दिलदार नजर नही आता
इस जिंदगी में कही मुझको करार नजर नही आता
खूब वाकिफ है ये जमाना मेरी तड़पती जिंदगानी से
उन्हें ही सिर्फ़ मेरा दिल-ऐ-बेकरार नजर नही आता
मर्ज कैसा ये लगा दिया खुदा इस खामोश जिंदगी को
मुझे अब मुझसे बढ़के कोई बीमार नजर नही आता
क्या मालूम कबूल हो पायेगी दुवा कभी इस दिल की
खुदा तेरी आँखों में रहम का आसार नजर नही आता
गम-ऐ-दिल को बनाके हमसफ़र कही चल दे ऐ 'ठाकुर'
राह-ऐ-जिंदगी में और कोई दिलदार नजर नही आता
1 comment:
haal-e-dil pura labjo me baya kiya hai..waw!
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