नही है जो तू सामने मेरे,मगर दूर भी तो नही
इस दिल को सिवा तेरे,कोई मंजूर भी तो नही
रख के हाथ दिल पे,सोचता हूँ कुछ बहल जाऊ
धडकनों के सिवा और कोई,सुरूर भी तो नही
बिता देंगे जहाँ-ऐ-इश्क में,तमाम उम्र अपनी
जीते जी लौट जाना,यहाँ का दस्तूर भी तो नही
नही थी जो नीयत तेरी,विसाल-ऐ-यार हो जाए
वरना ऐ खुदा तू इस कदर,मजबूर भी तो नही
क्यों ऐसी निगाह से देखता है जमाना तुझको 'ठाकुर'
इश्क में लूट जाना फ़िर तेरा कसूर भी तो नही
Saturday, November 7, 2009
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