Wednesday, October 20, 2010

दस्तूर है यहाँ का

गरज परस्ती एक ही सच है,फकत इस जहाँ का
साथ निभाता नहीं कोई,शिकस्ता दिल-ए-तनहा का
क्या खरीदने चला है दीवाने,तू बाजार-ए-मसर्रत में
दामन-ए-मुफलिस को जला देना,दस्तूर है यहाँ का  

मसर्रत-ख़ुशी,सुख
मुफलिस-गरीब

Tuesday, October 12, 2010

...अदा ख़ूब है

शरमा के इस तरह मेरी बाहों में आने की अदा ख़ूब है  
बेताब धडकनों को जुल्फोंतले मिलाने की अदा ख़ूब है
थर-थराते लबो से कुछ कहने की वो ना-काम कोशीशे
और गर्म सासों से हाल-ए-दिल सुनाने की अदा ख़ूब है

Saturday, October 9, 2010

...दायरे

तेरी बाहों के दायरे,अब मेरी जिंदगी के है
इन से आगे अब मेरी,कोई दुनिया नहीं
तेरी जुल्फों  के साये,मुहाफ़िज है ख्वाबो के 
इन के सिवा  अब मेरा,कोई आशियाँ नहीं   

Friday, October 8, 2010

आस

बात क्या बताये हम इस दिल-ए-बेजार की
बिताये ना बितती है अब घडी इन्तेजार की

 हसरते सीने में और तस्वीर वो निगाहों में
हाय!रह गयी है अब ये बाते सब बेकार की

गर एक खता है इश्क तो खतावार है हम
फिर कोई फरमाए सजा इस गुनाहगार की

करके दफन अरमा,जाये तो कहाँ जाये हम
बुझाये ना बुझती है शम्मा ये मजार की

जिंदगी बीती गम ना बाटा तेरा किसीने "ठाकुर"
अब भी आस है तुम्हे किसी गमगुसार की    

Thursday, October 7, 2010

तेरा अहसास

तेरा अहसास ही तो है सनम,ये जाँ मेरे जिस्म की
सुकू पाती है ये रूह मेरी,खुशबु लेकर तेरे हुस्न की
होती है तेरे एक तबस्सुम से,कायनात ये शब-नमी 
रहती है मेरी बेचैनीयो को अक्सर,आरजू तेरे वस्ल की  

Sunday, October 3, 2010

अरमा थे...

नींद खुली जो ख्वाब से,तो हालात ऐसे थे बदले हुवे
नफरत की गर्मी से,उम्मीदों के बरफ थे पिघले हुवे 
कब लगी आग,कब उठा धुवां,इल्म ये भी ना हुवा
बस मिल गये जो राख में,वो अरमा थे मेरे जले हुवे