हम जो चलते रहे,तो ये रात साथ चलती रही
हर बढ़ते कदम पर,सुबह की आस ढलती रही
दुनिया ने तो देख लिए सूरज के चढ़ते नज़ारे
खुशिया मेरी लेकिन अपनी आँख मलती रही
Sunday, March 22, 2009
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This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
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