Thursday, September 25, 2014

बेनाम सी है

एक मंजिल मेरी नज़र में गुमनाम सी है
और ये रहगुजर भी कुछ बदनाम सी है
दिल के शीशे में तो है ये अक्स किसीका
कहानी ऐ दिल मगर कुछ बेनाम सी है

दिल ऐ नादान

हाल ऐ दिल सुनाऊ उसको,इतना ही तो अरमान था 
मेरे बिगड़े मुक़द्दर में लेकिन,ये भी कहा आसान था
नाजुक थी इस दिल से भी,मेरे दिल की तमन्नायें 
और तमन्नाओ में उलझा हुवा,ये दिल ऐ नादान था  

Monday, September 22, 2014

इंतख्वाब

इश्क़ ने सीखा दिया हमे मजबूर होना भी
कितना हसीन है कभी खुद से दूर होना भी
है नाज़ मुझे  इस बेमिसाल इंतख्वाब पे
मेरा तो लाजमी है खुद पे गुरूर होना भी

इंतख्वाब--निवड







Wednesday, September 17, 2014

...लगा है कोई

शहर-ऐ-दिल में आ कर बसने लगा है कोई
क्यों मेरे ख्वाबो में अक्सर रुकने लगा है कोई 

ढूंढ रही थी उम्रभर मेरी बेताबियाँ जिसको
खुद ही आ कर धड़कनो में छुपने लगा है कोई

खामोशियो का भी गम नहीं मुझ दीवाने को
आखो से आकर बात जब करने लगा है कोई

सुकू पाता है मीठे जख्मो से ये दिल-ऐ-नाजुक 
तीर-ऐ-हुस्न ले कर जब चुभने लगा है कोई

आ के ज़रा देख तो सनम अपनी दहलीज़ पर 
के तेरी इबादत की खातिर झुकने लगा है कोई 

यु न छुप सकेगी अब ये आतिश-ऐ-दिल 'ठाकुर'
धुवाँ सा तेरे सीने से आखिर उठने लगा है कोई 













Thursday, September 4, 2014

...बने के न बने

ये गम नहीं है, के अब बात बने के न बने 
है तेरी आरजू ही काफी,मेरे जीने के लिये 
ये दुवा है के आये मौत भी,इसी बेखुदी में 
के फिर लौट आउ कभी,तुम्हे पाने के लिये 

Monday, September 1, 2014

...चाहूल

अजून नाही पाहीलं आहे गं मी तुला
पण माझं मन तुला स्पर्श करून आलय
तुझ्या त्या उडणाऱ्या केसांशी खेळून
स्वप्नांची ओंजळ केव्हाच भरून आलय

आता एक एक स्वप्न उराशी बाळगून
तुझ्याच नावानं पडतय गं हे पाऊल
तुझ्या मनातल्या परागकणांना देखील
नव्या सुगंधाची लागली असेल चाहूल


 

अशक्य

अशक्य असं कधी नव्हतच काही
पण तरीही मन हे मारावच लागलं
आवर शक्य त्या अशक्याला घालून
अर्धपोटी मला असं उठावच लागलं