Saturday, November 14, 2009

...क्यों नही

क्या करू मैं अब कोई समझाता क्यों नहीहाय!ये दर्द सीने से आख़िर जाता क्यों नही
मिलके इतने सारे पैमाने,दिल बहला न सके
ऐ साकी तू थोडी और मुझे पिलाता क्यों नही
कब से भटक रहा हूं मैं,इस गली से उस गली
मेहमाँ जान के मुझको,कोई घर बुलाता क्यों नहीअँधियारा मायूसी का बढ़के है इन रातो सेकोई आके चराग़ दिल में जलाता क्यों नही
है आरज़ू के झेल जाऊ इक ज़ख्म आखरी
ऐ खुदा तू तीर-ऐ-कज़ा चलाता क्यों नही
कितनी राते बितायी तुने,याद में जिन की 'ठाकुर'
उनको मगर कभी तू याद आता क्यों नही

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