Monday, November 28, 2011

...तुम भी नहीं

मुझको बेवफा कहनेवालो,बा-वफ़ा तो तुम भी नहीं
मेरे गमो पे हसनेवालो,खुशनुमा तो तुम भी नहीं
मेरे जख्मो से कुछ तो वास्ता है आखिर तुम्हारा भी
मुझको मार के बचनेवालो,यु तो जिन्दा तुम भी नहीं

Friday, November 4, 2011

...मुलाकात होनी चाहीये

हालात हो न हो मगर आपस में कुछ बात होनी चाहीये
हम कुछ खेले न खेले,बिछी हुवी ये बिसात होनी चाहीये
सुख के उन धागों में आज,वो एक असर नहीं ना सही
चलते चलते किसी मोड़ पर,एक मुलाकात होनी चाहीये


Friday, September 23, 2011

...को भूल जाऊ

ये तो कोई और है के मै तेरी परछाई को भूल जाऊ
तेरे खयाल में ही रहू और इस तनहाई को भूल जाऊ
आयी हो चाहे तब्दीली तेरी नजर में आज फिर भी
तेरी आरजू में ही रहू और इस बेवफाई को भूल जाऊ



Saturday, July 30, 2011

तल्खिया -- एक डर

तल्ख़ जुबा वालो,जरा और तल्ख़ी से काम लो
पता तो चले,के ये जहर और कितना है बाकी
ये हो जाये,तो झांक लेना तुम गिरेबा में अपने
जान लोगे,के तुम में ये डर और कितना है बाकी  


Wednesday, July 27, 2011

...गमगुसार बन के

चले आते है वो अक्सर,बड़े ही गम-गुसार बन के
छुपाके उस शगुफे में दरअसल,वो खार ले आते है
जुबा पे न हो,पर तल्खिया नजर आती है आखो में
जताते है ऐसे,के सारे ज़माने का वो प्यार ले आते है  

Saturday, June 25, 2011

दर्द

न उसने आग लगायी और न लगायी हमने
फिर भी दिल से धुवा अक्सर उठता रहा
वो ही था एक जो बाट सकता था दर्द मेरे
फिर भी दिल में दर्द क्यों कर उठता रहा 

...अब किसको ये खबर है

पीठ पीछे क्या होता है,अब किसको ये खबर है
रहनुमा बन के राह दिखाती,अपनी ये नजर है 

बस कदम है चलते और दिल है कही ठहरा हुवा
इसी खिचा-तानी से वाबस्ता हर एक बशर है 

नफरत के धारो में  है फसी,इंसानियत की कश्ती
डूबा के ही रख देता है एक दिन,ऐसा ये भंवर हैं


जिनको दिये थे  साये और पनाह इस पहलु में दी
उन्ही मुसाफिरों ने तोडा,दिल ऐसा एक शजर है 

अब क्या कहे "ठाकुर" दास्तान ए-गम-ए-जिंदगी
कितनी भी सुनाना चाहे जहाँ को,उतनी मुक्तसर है   


बशर-इंसान,
शजर-पेड़,
मुक्तसर-थोड़ी 

Saturday, June 18, 2011

...बिखरे नहीं है

थाम लो उन लम्हों को,जो यहाँ से अभी गुजरे नहीं है 
दिल दुखे है जरा से लेकिन,टूट के अभी बिखरे नहीं है 
एक मोहब्बत की सदा से,पुकार के देखो तो जरा तुम 
जख्म भर जायेंगे शायद,वो इतने अभी गहरे नहीं है 

Wednesday, June 15, 2011

...करते रहे

ख़ुशी से मुह मोड़ा और गम का यु ही इन्तेजार करते रहे
नश्तर से रंजिशे नहीं की,और जख्मों से प्यार करते रहे 
अश्क जो आये लबो तक,समझा आब-ए-हयात उनको 
नशे में जीते रहे इस तरह और मौत को बेजार करते रहे 
  

सुहूलियत

इतनी भी सुहूलियत नहीं,के खुल के अब रो सके
अपने ही दर्द को आखिर,इन अश्को में डुबो सके 
उब गया है ये दिल अब,अक्सर उठते तुफानो से 
ऐ खुदा मिटा दे ये जिंदगी,तुझसे गर से हो सके 

Tuesday, June 14, 2011

गलतफैमी

अदावते गर सच्ची होती तो कुछ बात थी
गलतफैम हो के ही अहबाब बिछड़े है सारे
एक दामन-ऐ-मोहब्बत से बांधा था सब को 
किसी कच्चे धागे की तरह बिखरे है सारे 

Thursday, June 2, 2011

...गुजर जाते है लोग

जरा सी चोट लग जाये,तो क्यों बिखर जाते है लोग
जोड़ने की कहते कहते,तोड़ने पे उतर आते है लोग
दूर से नजर आते ही,उम्मीद सी दिल में जगा के  
करीब आ के लेकिन,बिन देखे गुजर जाते है लोग  

Sunday, May 8, 2011

...कोई कमी सी

बस एक नजर देखो तुम,हर जख्म का मरहम इसी में है
खामोश दिल का मुस्कुराना,अब भी तुम्हारी ख़ुशी में है
इन्कार न करना ऐ दोस्त,के मेरा दिल कह रहा है मुझसे 
के मेरे बगैर कोई कमी सी,आज भी तेरी जिंदगी में है     


Friday, May 6, 2011

आगाह

सोज़-ए-दिल से मुसलसल,फन-ए-ज़िंदगी सिखता हूँ मै 
दौर-ए-मसर्रत ने आज तक,गुमराह ही किया है मुझको 
लोग तो ख़ुशी के मारे,होश-ओ-हवास खो बैठते है अपना
वक़्त-ए-सुकूं  ने लेकीन,दर्द से आगाह ही किया है मुझको 

सोज़ -जलन 
मुसलसल-लगातार
फ़न -कला
मसर्रत -सुख 

Saturday, April 30, 2011

...बाकि कुछ हुवा भी नहीं

पूरी तरह से टुटा भी नहीं,पूरी तरह से बचा भी नहीं
बिच राह में खड़ा है रिश्ता,किसी तरफ गया भी नहीं
दिखाती है जो मक़ाम जिंदगी,मंजूर कैसे न करे हम 
दिल बस दुखता है जरासा,बाकी कुछ हुवा भी नहीं 

Friday, April 8, 2011

...बदल जाता है

वो रोज़ मिलते है तो ये दिल-ऐ-नादाँ बहल जाता है
कितनी बार गिरते गिरते दीवाना सम्हल जाता है डर लगता है लेकिन ये उम्मीद भी न टूट जाये कहीं 
के जरा सी बात पर आज-कल इंसान बदल जाता है 



Thursday, April 7, 2011

...बेवफा बन जाता है

दैर-ओ-हरम से निकलते ही,ये क्या बन जाता है
अपनी खुद्दारी को सर पे लिए खुदा बन जाता है
मतलब की खातिर गले से लगा लेता है औरो को
ऐ आदमी एक पल में ही फिर तू बेवफा बन जाता है  

Wednesday, April 6, 2011

...मिलना होगा

मोड़ आयेंगे राहों में,फिर भी हमे चलना होगा
जुदा रह के भी हमे खयालो में मिलना होगा
सर्द होने न पाये कभी,ये  लहू अपनी यारी का
इसी आरजू में दोस्त,एक संग हमे जलना होगा 

Monday, March 28, 2011

पहले भी कुछ....

पहले भी कुछ मिलता था तुमसे,आज भी कुछ मिलता है
फर्क इतना ही है के मोहब्बत की जगह झिझक ने ली है
पहले भी ढूंढता था मै अक्सर,तुझ को तुझ ही में लेकिन
इस दायरे की जगह अब शायद,फैले हुवे उफक ने ली है

उफक--क्षितिज

Friday, March 25, 2011

फिर से एक बार

वो जख्म भरेंगे कैसे,अगर बार बार छेड़े जाये
दिल क्यों न दुखेंगे,अगर बार बार तोड़े जाये
मोहब्बत करनेवाले तुमसे,यही चाहेंगे फिर भी
वो ठहरे हुवे रिश्ते,फिर से एक बार जोड़े जाये

Saturday, February 12, 2011

डोर-ए-जीस्त

ऐ दिल तू कोशिश ना कर,अब कोई दर्द मिटाने की  
आग में जल जा,पर आरजू ना कर इसे बुझाने की
कुछ सुनेगा तेरी,ऐसा कौन है अब इस दुनिया में
बस राह देख तू अब,ये डोर-ए-जीस्त टूट जाने की

जीस्त-जिंदगी

Tuesday, January 18, 2011

और कही देखा ही नहीं

उनसे पहले दिल अपना इस तरह कही लगा ही नहीं
देखा जो एक बार उनको फिर और कही देखा ही नहीं

वो तसव्वुर वो अहसास वो बेखुदी आये है जिंदगी में
कैसे कहूँ मेरी खातिर यह जमाना अब बदला ही नहीं

संग-ए-दर-ए-यार से वाबस्ता अपने सजदे हो गये है
मैं तो उठा मुरव्वत से,मगर दिल मेरा उठा ही नहीं

उनकी उल्फत में ता-आसमाँ पोह्ची है ख्वाहिशे अपनी
जमी पे जैसे कदमो को हमने कभी रखा ही नहीं

लाख छुपाये रखा तुमने"ठाकुर" तस्वीर-ए-हुस्न-ए-यार को  
शीशा-ए-दिल से मगर अक्स उनका कभी छुपा ही नहीं  

शजर

नफरत की आग में क्यों किसी का घर जलाये बैठे हो
क्या है खबर तुम्हे किसी का मुक़द्दर जलाये बैठे हो
जिंदगी की धुप में तुम कोई साया अब पाओगे कैसे 
खुद ही अपने ताल्लुक का तुम  शजर जलाये बैठे हो

शजर...पेड़/Tree

Monday, January 17, 2011

कमजर्फी

अपनीही मस्ती में चूर,लोगो की कमज़र्फी क्या कहे
गम-ए-गैर पे हसने वाले,ज़माने की हमदर्दी क्या कहे
मतलब की खातिर दर-ए-हरम पे, अपना सर झुकानेवाले
इंसा तो क्या,खुदा से भी इनकी,खुदगर्ज़ी क्या कहे  

कमज़र्फ --कोत्या मनाचा