Monday, January 17, 2011

कमजर्फी

अपनीही मस्ती में चूर,लोगो की कमज़र्फी क्या कहे
गम-ए-गैर पे हसने वाले,ज़माने की हमदर्दी क्या कहे
मतलब की खातिर दर-ए-हरम पे, अपना सर झुकानेवाले
इंसा तो क्या,खुदा से भी इनकी,खुदगर्ज़ी क्या कहे  

कमज़र्फ --कोत्या मनाचा 

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