ख़ुशी से मुह मोड़ा और गम का यु ही इन्तेजार करते रहे
नश्तर से रंजिशे नहीं की,और जख्मों से प्यार करते रहे
अश्क जो आये लबो तक,समझा आब-ए-हयात उनको
नशे में जीते रहे इस तरह और मौत को बेजार करते रहे
This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
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