Wednesday, June 15, 2011

सुहूलियत

इतनी भी सुहूलियत नहीं,के खुल के अब रो सके
अपने ही दर्द को आखिर,इन अश्को में डुबो सके 
उब गया है ये दिल अब,अक्सर उठते तुफानो से 
ऐ खुदा मिटा दे ये जिंदगी,तुझसे गर से हो सके 

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