इतनी भी सुहूलियत नहीं,के खुल के अब रो सके
अपने ही दर्द को आखिर,इन अश्को में डुबो सके
उब गया है ये दिल अब,अक्सर उठते तुफानो से
ऐ खुदा मिटा दे ये जिंदगी,तुझसे गर से हो सके
This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
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