उनसे पहले दिल अपना इस तरह कही लगा ही नहीं
देखा जो एक बार उनको फिर और कही देखा ही नहीं
वो तसव्वुर वो अहसास वो बेखुदी आये है जिंदगी में
कैसे कहूँ मेरी खातिर यह जमाना अब बदला ही नहीं
संग-ए-दर-ए-यार से वाबस्ता अपने सजदे हो गये है
मैं तो उठा मुरव्वत से,मगर दिल मेरा उठा ही नहीं
उनकी उल्फत में ता-आसमाँ पोह्ची है ख्वाहिशे अपनी
जमी पे जैसे कदमो को हमने कभी रखा ही नहीं
लाख छुपाये रखा तुमने"ठाकुर" तस्वीर-ए-हुस्न-ए-यार को
शीशा-ए-दिल से मगर अक्स उनका कभी छुपा ही नहीं
Tuesday, January 18, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment