पीठ पीछे क्या होता है,अब किसको ये खबर है
रहनुमा बन के राह दिखाती,अपनी ये नजर है
बस कदम है चलते और दिल है कही ठहरा हुवा
इसी खिचा-तानी से वाबस्ता हर एक बशर है
नफरत के धारो में है फसी,इंसानियत की कश्ती
डूबा के ही रख देता है एक दिन,ऐसा ये भंवर हैं
जिनको दिये थे साये और पनाह इस पहलु में दी
उन्ही मुसाफिरों ने तोडा,दिल ऐसा एक शजर है
अब क्या कहे "ठाकुर" दास्तान ए-गम-ए-जिंदगी
कितनी भी सुनाना चाहे जहाँ को,उतनी मुक्तसर है
बशर-इंसान,
शजर-पेड़,
मुक्तसर-थोड़ी
बशर-इंसान,
शजर-पेड़,
मुक्तसर-थोड़ी
4 comments:
BHUT BADIYA LIKHA HAI AAPANE .BADHAI HO.
बहुत खूब ....
बहुत ही बढ़िया...
वाह ...बहुत खूब।
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