हम भी हस लेते,गर ना रूठा अपना मुक़द्दर होता
दो पल गुजारना चैन के,हम को भी मयस्सर होता
शम्स-ए-मसर्रत ने आजकल,मुह फेरा है हम से वर्ना
छोटासा आशियाँ ये अपना भी,कुछ तो मुनव्वर होता
मयस्सर-मुमकिन/हासिल
मुनव्वर-प्रकाशमान
मसर्रत-ख़ुशी,सुख
Tuesday, December 14, 2010
Wednesday, October 20, 2010
दस्तूर है यहाँ का
गरज परस्ती एक ही सच है,फकत इस जहाँ का
साथ निभाता नहीं कोई,शिकस्ता दिल-ए-तनहा का
क्या खरीदने चला है दीवाने,तू बाजार-ए-मसर्रत में
दामन-ए-मुफलिस को जला देना,दस्तूर है यहाँ का
मसर्रत-ख़ुशी,सुख
मुफलिस-गरीब
साथ निभाता नहीं कोई,शिकस्ता दिल-ए-तनहा का
क्या खरीदने चला है दीवाने,तू बाजार-ए-मसर्रत में
दामन-ए-मुफलिस को जला देना,दस्तूर है यहाँ का
मसर्रत-ख़ुशी,सुख
मुफलिस-गरीब
Tuesday, October 12, 2010
...अदा ख़ूब है
शरमा के इस तरह मेरी बाहों में आने की अदा ख़ूब है
बेताब धडकनों को जुल्फोंतले मिलाने की अदा ख़ूब है
थर-थराते लबो से कुछ कहने की वो ना-काम कोशीशे
और गर्म सासों से हाल-ए-दिल सुनाने की अदा ख़ूब है
बेताब धडकनों को जुल्फोंतले मिलाने की अदा ख़ूब है
थर-थराते लबो से कुछ कहने की वो ना-काम कोशीशे
और गर्म सासों से हाल-ए-दिल सुनाने की अदा ख़ूब है
Saturday, October 9, 2010
...दायरे
तेरी बाहों के दायरे,अब मेरी जिंदगी के है
इन से आगे अब मेरी,कोई दुनिया नहीं
तेरी जुल्फों के साये,मुहाफ़िज है ख्वाबो के
इन के सिवा अब मेरा,कोई आशियाँ नहीं
इन से आगे अब मेरी,कोई दुनिया नहीं
तेरी जुल्फों के साये,मुहाफ़िज है ख्वाबो के
इन के सिवा अब मेरा,कोई आशियाँ नहीं
Friday, October 8, 2010
आस
बात क्या बताये हम इस दिल-ए-बेजार की
बिताये ना बितती है अब घडी इन्तेजार की
हसरते सीने में और तस्वीर वो निगाहों में
हाय!रह गयी है अब ये बाते सब बेकार की
गर एक खता है इश्क तो खतावार है हम
फिर कोई फरमाए सजा इस गुनाहगार की
करके दफन अरमा,जाये तो कहाँ जाये हम
बुझाये ना बुझती है शम्मा ये मजार की
जिंदगी बीती गम ना बाटा तेरा किसीने "ठाकुर"
अब भी आस है तुम्हे किसी गमगुसार की
बिताये ना बितती है अब घडी इन्तेजार की
हसरते सीने में और तस्वीर वो निगाहों में
हाय!रह गयी है अब ये बाते सब बेकार की
गर एक खता है इश्क तो खतावार है हम
फिर कोई फरमाए सजा इस गुनाहगार की
करके दफन अरमा,जाये तो कहाँ जाये हम
बुझाये ना बुझती है शम्मा ये मजार की
जिंदगी बीती गम ना बाटा तेरा किसीने "ठाकुर"
अब भी आस है तुम्हे किसी गमगुसार की
Thursday, October 7, 2010
तेरा अहसास
तेरा अहसास ही तो है सनम,ये जाँ मेरे जिस्म की
सुकू पाती है ये रूह मेरी,खुशबु लेकर तेरे हुस्न की
होती है तेरे एक तबस्सुम से,कायनात ये शब-नमी
रहती है मेरी बेचैनीयो को अक्सर,आरजू तेरे वस्ल की
सुकू पाती है ये रूह मेरी,खुशबु लेकर तेरे हुस्न की
होती है तेरे एक तबस्सुम से,कायनात ये शब-नमी
रहती है मेरी बेचैनीयो को अक्सर,आरजू तेरे वस्ल की
Sunday, October 3, 2010
अरमा थे...
नींद खुली जो ख्वाब से,तो हालात ऐसे थे बदले हुवे
नफरत की गर्मी से,उम्मीदों के बरफ थे पिघले हुवे
कब लगी आग,कब उठा धुवां,इल्म ये भी ना हुवा
बस मिल गये जो राख में,वो अरमा थे मेरे जले हुवे
नफरत की गर्मी से,उम्मीदों के बरफ थे पिघले हुवे
कब लगी आग,कब उठा धुवां,इल्म ये भी ना हुवा
बस मिल गये जो राख में,वो अरमा थे मेरे जले हुवे
Wednesday, September 29, 2010
...मुझपे आये क्यों
हर गुनाह का इल्जाम,आखिर मुझपे आये क्यों
ना-खतावार हो के भी हम,ऐसी सजा पाए क्यों
उनकी बेवफाई का ताज्जुब,होता नहीं किसे भी
और मेरी वफ़ा को जमाना,सवालो में लाये क्यों
ना-खतावार हो के भी हम,ऐसी सजा पाए क्यों
उनकी बेवफाई का ताज्जुब,होता नहीं किसे भी
और मेरी वफ़ा को जमाना,सवालो में लाये क्यों
Wednesday, September 15, 2010
सबूत
इन सुखी निगाहों से क्या सबूत मांगते हो
ये अश्क तो आखिर अपने दिल से बह रहे है
मेरे मुस्कुराने पे ना जाओ तुम दुनिया वालो
परदे में तबस्सुम के हम ये दर्द सह रहे है
ये अश्क तो आखिर अपने दिल से बह रहे है
मेरे मुस्कुराने पे ना जाओ तुम दुनिया वालो
परदे में तबस्सुम के हम ये दर्द सह रहे है
Tuesday, September 14, 2010
...जिंदगी हारी हुवी
ख़ामोशी में पड़ी है अपनी ये जिंदगी हारी हुवी
अपनी ही नजर से आप ही हमने यु उतारी हुवी
ना अज्म-ए-सफ़र है ना वजूद किसी मंजिल का
शौक-ए-तबाही में अब तक जो है गुजारी हुवी
अपनी ही नजर से आप ही हमने यु उतारी हुवी
ना अज्म-ए-सफ़र है ना वजूद किसी मंजिल का
शौक-ए-तबाही में अब तक जो है गुजारी हुवी
Saturday, September 11, 2010
...टूटने से डरता है
दिल ये कुछ ऐसा है अपना,के टूटने से डरता है
साथ अपनों का किसी मोड़ पे छूटने से डरता है
दिल के एक कोने में,कुछ खुशिया है भरी हुवी
छोटा सा अपना ये जहाँ अब लूटने से डरता है
साथ अपनों का किसी मोड़ पे छूटने से डरता है
दिल के एक कोने में,कुछ खुशिया है भरी हुवी
छोटा सा अपना ये जहाँ अब लूटने से डरता है
Wednesday, September 8, 2010
...गिरफ्तार हो जाने दो
सरकने दो आँचल थोडा,धडकनों का दीदार हो जाने दो
प्यासी निगाहों को सम्हालना,और भी दुश्वार हो जाने दो
ताबीर मेरे ख्वाब ए हयात की,जो आज मुझसे है रूबरू
इस क़ैद ए बेखुदी में मुझको तुम,गिरफ्तार हो जाने दो
प्यासी निगाहों को सम्हालना,और भी दुश्वार हो जाने दो
ताबीर मेरे ख्वाब ए हयात की,जो आज मुझसे है रूबरू
इस क़ैद ए बेखुदी में मुझको तुम,गिरफ्तार हो जाने दो
Friday, August 13, 2010
मुस्कुराये कब तक
यु झूठी खुशियों के सहारे मुस्कुराये कब तक
यु अश्को के सैलाब पलकों से टकराए कब तक
रख दू हाथ जो सीने पे तो दिल ये पूछता है
यु काटों पे ये जिंदगी आखिर बिछाए कब तक
यु अश्को के सैलाब पलकों से टकराए कब तक
रख दू हाथ जो सीने पे तो दिल ये पूछता है
यु काटों पे ये जिंदगी आखिर बिछाए कब तक
Thursday, August 12, 2010
शब-ए-शाद
रातभर छुपाते है वो मुझको,जुल्फ ओ दामन में
मैं भी खुद को भूल रहा,महकी हुवी चिलमन में
ऐ वक़्त ठहर जा या बढ़ा कदम आहिस्ता अपने
के पहली बार आयी है ये शब-ए-शाद मेरे जीवन में
शब-ए-शाद---खुशियों की रात
मैं भी खुद को भूल रहा,महकी हुवी चिलमन में
ऐ वक़्त ठहर जा या बढ़ा कदम आहिस्ता अपने
के पहली बार आयी है ये शब-ए-शाद मेरे जीवन में
शब-ए-शाद---खुशियों की रात
Tuesday, August 10, 2010
...आ जाओ
मोहब्बत नहीं तो इंसानियत की खातिर आ जाओ
अपने इस दीवाने की राहत की खातिर आ जाओ
किस दर पे ना सजदे किये है मैंने तेरी आरजू में
दिल ने मांगी हुवी मन्नत की खातिर आ जाओ
अपने इस दीवाने की राहत की खातिर आ जाओ
किस दर पे ना सजदे किये है मैंने तेरी आरजू में
दिल ने मांगी हुवी मन्नत की खातिर आ जाओ
Wednesday, July 21, 2010
...चुभने लगे है
सफिने इश्क के दर्या-ए-वक़्त में डूबने लगे है
महल उन ख्वाबो के मेरे आगे टूटने लगे है
जिनको समझ के फूल लगाके रखा है सीने से
वोही अब काटा बनके दिल को चुभने लगे है
महल उन ख्वाबो के मेरे आगे टूटने लगे है
जिनको समझ के फूल लगाके रखा है सीने से
वोही अब काटा बनके दिल को चुभने लगे है
Wednesday, July 14, 2010
क्या करे
इमकानात सफ़र के ही जो ना रहे
तो अब इंतजार-ए-हमसफ़र क्या करे
सु-ए-उफक-ए-उम्मीद भी देखे क्यों
डोर सासों की रही मुख़्तसर क्या करे
इमकानात-शक्यता
उफक-क्षितिज
मुख़्तसर-थोड़ी(Short)
तो अब इंतजार-ए-हमसफ़र क्या करे
सु-ए-उफक-ए-उम्मीद भी देखे क्यों
डोर सासों की रही मुख़्तसर क्या करे
इमकानात-शक्यता
उफक-क्षितिज
मुख़्तसर-थोड़ी(Short)
Saturday, June 19, 2010
...तुम्हे रुला देता
हकीकत मैं अपनी जो तुम्हे सुना देता
इक बार अपने दर्द से तुम्हे रुला देता
मोती उन अश्को के सीने से लगा के
अपनी ख्वाहिशो को ता-उम्र भुला देता
इक बार अपने दर्द से तुम्हे रुला देता
मोती उन अश्को के सीने से लगा के
अपनी ख्वाहिशो को ता-उम्र भुला देता
Friday, January 15, 2010
वो ख्वाब क्या हुवे
वो ख्वाब क्या हुवे,जो हकीकत की राह चले थे
वो चराग क्यों बुझे,जो अपनी दुनिया में जले थे
क्या आ के लौट ही जाना था,चमन से बहारो को
क्या दूर ही जाने को हम से,आखिर वो मिले थे
वो चराग क्यों बुझे,जो अपनी दुनिया में जले थे
क्या आ के लौट ही जाना था,चमन से बहारो को
क्या दूर ही जाने को हम से,आखिर वो मिले थे
Sunday, January 3, 2010
आ गये वो
चुपके से बज़्मे-ए-ख़्वाब,दिल में सजा गये वो
रंग किसी नशे के,मेरी हस्ती पे जमा गये वो
धडकनों से सजा रखी हैं मैंने,हर राह उनकी
संग मेरी ख़्वाहिशों के,मेरे घर तक आ गये वो
@ मनिष गोखले...
रंग किसी नशे के,मेरी हस्ती पे जमा गये वो
धडकनों से सजा रखी हैं मैंने,हर राह उनकी
संग मेरी ख़्वाहिशों के,मेरे घर तक आ गये वो
@ मनिष गोखले...
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