हर गुनाह का इल्जाम,आखिर मुझपे आये क्यों
ना-खतावार हो के भी हम,ऐसी सजा पाए क्यों
उनकी बेवफाई का ताज्जुब,होता नहीं किसे भी
और मेरी वफ़ा को जमाना,सवालो में लाये क्यों
Wednesday, September 29, 2010
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This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
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