ख़ामोशी में पड़ी है अपनी ये जिंदगी हारी हुवी
अपनी ही नजर से आप ही हमने यु उतारी हुवी
ना अज्म-ए-सफ़र है ना वजूद किसी मंजिल का
शौक-ए-तबाही में अब तक जो है गुजारी हुवी
Tuesday, September 14, 2010
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This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
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