सरकने दो आँचल थोडा,धडकनों का दीदार हो जाने दो
प्यासी निगाहों को सम्हालना,और भी दुश्वार हो जाने दो
ताबीर मेरे ख्वाब ए हयात की,जो आज मुझसे है रूबरू
इस क़ैद ए बेखुदी में मुझको तुम,गिरफ्तार हो जाने दो
Wednesday, September 8, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
आंच पर संबंध विस्तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!
Post a Comment