बात क्या बताये हम इस दिल-ए-बेजार की
बिताये ना बितती है अब घडी इन्तेजार की
हसरते सीने में और तस्वीर वो निगाहों में
हाय!रह गयी है अब ये बाते सब बेकार की
गर एक खता है इश्क तो खतावार है हम
फिर कोई फरमाए सजा इस गुनाहगार की
करके दफन अरमा,जाये तो कहाँ जाये हम
बुझाये ना बुझती है शम्मा ये मजार की
जिंदगी बीती गम ना बाटा तेरा किसीने "ठाकुर"
अब भी आस है तुम्हे किसी गमगुसार की
Friday, October 8, 2010
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