गरज परस्ती एक ही सच है,फकत इस जहाँ का
साथ निभाता नहीं कोई,शिकस्ता दिल-ए-तनहा का
क्या खरीदने चला है दीवाने,तू बाजार-ए-मसर्रत में
दामन-ए-मुफलिस को जला देना,दस्तूर है यहाँ का
मसर्रत-ख़ुशी,सुख
मुफलिस-गरीब
Wednesday, October 20, 2010
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