इन सुखी निगाहों से क्या सबूत मांगते हो
ये अश्क तो आखिर अपने दिल से बह रहे है
मेरे मुस्कुराने पे ना जाओ तुम दुनिया वालो
परदे में तबस्सुम के हम ये दर्द सह रहे है
Wednesday, September 15, 2010
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This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
2 comments:
well said....kuch baat hei aap me..
परदे में तबस्सुम के हम ये दर्द सह रहे हैं
बहुत खूब....
http://veenakesur.blogspot.com/
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