तेरा अहसास ही तो है सनम,ये जाँ मेरे जिस्म की
सुकू पाती है ये रूह मेरी,खुशबु लेकर तेरे हुस्न की
होती है तेरे एक तबस्सुम से,कायनात ये शब-नमी
रहती है मेरी बेचैनीयो को अक्सर,आरजू तेरे वस्ल की
Thursday, October 7, 2010
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4 comments:
सब की अलग अलग फ़िलोसफ़ी है....एक शायर तो बिल्कुल आस से उल्टा फ़र्मा रहे हैं....
यारब दुआ-ए-वस्ल ना हर्गिज कबूल हो
फ़िर दिल में क्या रहा जो हसरत निकल गई
ही ही जस्ट जोकिंग... सुन्दर शेर के लिये बधाई
बहुत खूब।
वाह ।
very good
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