Tuesday, October 28, 2014

...आया हूँ

फ़िर कलियां तेरे तबस्सुम की,चुनने आया हूँ
इन पलकों के दामन में कुछ देर,छुपने आया हूँ 
भरी महफ़िल में जो कहते रहे तुम,निगाहों से
इस तन्हाई में वो तेरे लबो से ,सुनने आया हूँ












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