Saturday, June 25, 2011

दर्द

न उसने आग लगायी और न लगायी हमने
फिर भी दिल से धुवा अक्सर उठता रहा
वो ही था एक जो बाट सकता था दर्द मेरे
फिर भी दिल में दर्द क्यों कर उठता रहा 

...अब किसको ये खबर है

पीठ पीछे क्या होता है,अब किसको ये खबर है
रहनुमा बन के राह दिखाती,अपनी ये नजर है 

बस कदम है चलते और दिल है कही ठहरा हुवा
इसी खिचा-तानी से वाबस्ता हर एक बशर है 

नफरत के धारो में  है फसी,इंसानियत की कश्ती
डूबा के ही रख देता है एक दिन,ऐसा ये भंवर हैं


जिनको दिये थे  साये और पनाह इस पहलु में दी
उन्ही मुसाफिरों ने तोडा,दिल ऐसा एक शजर है 

अब क्या कहे "ठाकुर" दास्तान ए-गम-ए-जिंदगी
कितनी भी सुनाना चाहे जहाँ को,उतनी मुक्तसर है   


बशर-इंसान,
शजर-पेड़,
मुक्तसर-थोड़ी 

Saturday, June 18, 2011

...बिखरे नहीं है

थाम लो उन लम्हों को,जो यहाँ से अभी गुजरे नहीं है 
दिल दुखे है जरा से लेकिन,टूट के अभी बिखरे नहीं है 
एक मोहब्बत की सदा से,पुकार के देखो तो जरा तुम 
जख्म भर जायेंगे शायद,वो इतने अभी गहरे नहीं है 

Wednesday, June 15, 2011

...करते रहे

ख़ुशी से मुह मोड़ा और गम का यु ही इन्तेजार करते रहे
नश्तर से रंजिशे नहीं की,और जख्मों से प्यार करते रहे 
अश्क जो आये लबो तक,समझा आब-ए-हयात उनको 
नशे में जीते रहे इस तरह और मौत को बेजार करते रहे 
  

सुहूलियत

इतनी भी सुहूलियत नहीं,के खुल के अब रो सके
अपने ही दर्द को आखिर,इन अश्को में डुबो सके 
उब गया है ये दिल अब,अक्सर उठते तुफानो से 
ऐ खुदा मिटा दे ये जिंदगी,तुझसे गर से हो सके 

Tuesday, June 14, 2011

गलतफैमी

अदावते गर सच्ची होती तो कुछ बात थी
गलतफैम हो के ही अहबाब बिछड़े है सारे
एक दामन-ऐ-मोहब्बत से बांधा था सब को 
किसी कच्चे धागे की तरह बिखरे है सारे 

Thursday, June 2, 2011

...गुजर जाते है लोग

जरा सी चोट लग जाये,तो क्यों बिखर जाते है लोग
जोड़ने की कहते कहते,तोड़ने पे उतर आते है लोग
दूर से नजर आते ही,उम्मीद सी दिल में जगा के  
करीब आ के लेकिन,बिन देखे गुजर जाते है लोग