Friday, November 14, 2014

...पाते है देखे

हर गाम पे है काटो की बस्ती,कहा तक चल पाते है देखे
इस बे-सहारा जिंदगानी में,कब तक सम्हल पाते है देखे 

वो दूर उफक तक है फैला,हुकूमत-ए-जुल्मत का सितम   
उम्मीद की किरनो के काफिले,कब निकल पाते है देखे  

सुना है हर दर पे सुकू,दस्तक दे ही देता है एक दिन 
पैगाम-ए-मसर्रत अब दिल को,कब मिल पाते है देखे

दर-ए-खुदा हो,ये सनमकदा हो या फिर हो ये मैखाना
मुन्तशिर किस्मत के रास्ते,कहा से बदल पाते है देखे

तेरे साथ ही नहीं चलते है आजकल,तेरे ही साये "ठाकुर"
फासले अब ये अनजाने से, कब पिघल पाते है देखे

गाम-पाऊल
उफ़क़ --क्षितिज
ज़ुल्मत --अंधार
मसर्रत --ख़ुशी
मुंतशिर --विस्कटलेला




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