किस तरह गुजरी ये शब्-ए-ख़याल,क्या पता
हाय!क्यों तडपा गया उनका जमाल,क्या पता
इब्तिदा-ए-इश्क समझे इसे,या फिर ख्वाब कोई
क्यों सता रहा है मुझको ये सवाल,क्या पता
Thursday, December 31, 2009
Saturday, December 19, 2009
जिंदगी के लिये
यु न उठता है दर्द यहाँ हर किसी के लिये
ये दिल भी धड़कता फकत उसी के लिये
जिसके अहसास में है खुशबू जिंदगी की
वोही होता है अपना इस जिंदगी के लिये
ये दिल भी धड़कता फकत उसी के लिये
जिसके अहसास में है खुशबू जिंदगी की
वोही होता है अपना इस जिंदगी के लिये
Friday, December 18, 2009
वो जुदा होते रहे
सामने इन निगाहों के तेरे साये जुदा होते रहे
हसरतो की बाग़ में खिले ख्वाब बस रोते रहे
कश्तियां मोहब्बत की दूर ही रही किनारों से
हम भी अपनी जिंदगी आसुओ में डुबोते रहे
हसरतो की बाग़ में खिले ख्वाब बस रोते रहे
कश्तियां मोहब्बत की दूर ही रही किनारों से
हम भी अपनी जिंदगी आसुओ में डुबोते रहे
Thursday, December 17, 2009
सवेरा हो गया
बेहोश कर दिया खुलती जुल्फ ने किसीकी
इन अंधेरो में भी जैसे एक सवेरा हो गया
आसमाँ तक भरी उड़ान अपनी हसरतो ने
जन्नत में अब जिंदगी का बसेरा हो गया
इन अंधेरो में भी जैसे एक सवेरा हो गया
आसमाँ तक भरी उड़ान अपनी हसरतो ने
जन्नत में अब जिंदगी का बसेरा हो गया
हमे आजमाओ तुम
ऐसे ही तुम शरमाते रहो और मुस्कुराते रहो
गौहर अपनी हया के फजा में बिखराते रहो
सबूत हमने भी दिये है कितने दीवानगी के
खुदा के लिये हमे और तुम आजमाते रहो
गौहर अपनी हया के फजा में बिखराते रहो
सबूत हमने भी दिये है कितने दीवानगी के
खुदा के लिये हमे और तुम आजमाते रहो
Monday, December 7, 2009
कामयाबी है सबकुछ
चलते रहे हम,जब तक न कोई मकां मिले
है मजा और भी,गर साथ कोई कारवां मिले
पोहोचना मंजिल पे है मगर सबकुछ यहाँ
चाहे साथ रहे कोई,या फ़िर वो तनहा मिले
है मजा और भी,गर साथ कोई कारवां मिले
पोहोचना मंजिल पे है मगर सबकुछ यहाँ
चाहे साथ रहे कोई,या फ़िर वो तनहा मिले
Thursday, December 3, 2009
...कुछ और था
जो आग थी सीने में,उसका नाम कुछ और था
कल तक उनकी निगाहों का,पैगाम कुछ और था
दुखता था कभी ये दिल,तो सम्हाल लेते थे वो
दर्द भूल जाने का वो इन्तेजाम कुछ और था
सितम भी आसां बन जाते थे,पहलु में उनके
उस दामन की खुशबू का निजाम कुछ और था
मुकम्मल होता सफर,जो तेरे दर तक आ जाते
पोहचे मगर जहा तक वो मकाम कुछ और था
क्या से क्या हो गया है तेरे अफ़साने का 'ठाकुर'
जो सोचा था तुने वो शायद अंजाम कुछ और था
कल तक उनकी निगाहों का,पैगाम कुछ और था
दुखता था कभी ये दिल,तो सम्हाल लेते थे वो
दर्द भूल जाने का वो इन्तेजाम कुछ और था
सितम भी आसां बन जाते थे,पहलु में उनके
उस दामन की खुशबू का निजाम कुछ और था
मुकम्मल होता सफर,जो तेरे दर तक आ जाते
पोहचे मगर जहा तक वो मकाम कुछ और था
क्या से क्या हो गया है तेरे अफ़साने का 'ठाकुर'
जो सोचा था तुने वो शायद अंजाम कुछ और था
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