Wednesday, April 8, 2015

मेरी कहानी नहीं कहती,मेरे हाथों की लकीरें
देखू गौर से जो इन को,तो तेरा ही ज़िक्र पाता हूँ 
कुछ हाल है ऐसा ही,आजकल मेरी आँखों का
जानिबे-खुदा भी देखू,तो तेरा ही अक्स पाता हूँ 

@ मनिष गोखले... 

No comments: