Thursday, October 7, 2010

तेरा अहसास

तेरा अहसास ही तो है सनम,ये जाँ मेरे जिस्म की
सुकू पाती है ये रूह मेरी,खुशबु लेकर तेरे हुस्न की
होती है तेरे एक तबस्सुम से,कायनात ये शब-नमी 
रहती है मेरी बेचैनीयो को अक्सर,आरजू तेरे वस्ल की  

4 comments:

Mohinder56 said...

सब की अलग अलग फ़िलोसफ़ी है....एक शायर तो बिल्कुल आस से उल्टा फ़र्मा रहे हैं....

यारब दुआ-ए-वस्ल ना हर्गिज कबूल हो
फ़िर दिल में क्या रहा जो हसरत निकल गई

ही ही जस्ट जोकिंग... सुन्दर शेर के लिये बधाई

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब।

Asha Joglekar said...

वाह ।

Manish Gokhale(Thakur Baldevsingh)9822859270 said...

very good