इस जहाँ मे मेरे होने का कब सुबूत था
मुझ मे मैं ही कहाँ मौजूद था
चलते फिरते जिस्म को कैसे कहूँ जिंदगी
ढुंढते ढुंढते थक गया जिसे वो मेरा वजूद था
Thursday, March 20, 2008
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This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
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