Tuesday, March 18, 2008

इम्तेहा दिल का

खामोश दिल की गलियों मे ये तुफाँ कैसा
नजरो से दिल तक पोह्चा ये मेहमाँ कैसा
सुकु था कल तक दिल को,मगर अब नही
बेचैनी ले रही है हर पल ये इम्तेहा कैसा

2 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया
holi ki shubhakamana ke sath

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर मुक्तक है बधाई स्वीकारें।