बे-इन्तहा बे-वजह बेकाबू हो गया
ये दिल,दिल ना रहा खाना-ए-आरजू हो गया
एक पल भी अब चैन आये कहा से
मकसद-ए-जिंदगी यार की जुस्तजू हो गया
Thursday, August 2, 2007
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This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
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