Saturday, August 29, 2015

वो अपना तो न हो सका,पर उसे तनहा कैसे छोड़ दू
मुझे तो मोहब्बत है उस से,मै ये दावा कैसे छोड़ दू
जहा पायी है मैंने अक्सर,मेरे ख्वाबो की बस्तिया 
उसके घर को जाता हुवा,ये रास्ता कैसे छोड़ दू 
बस कज़ा ही छीन सकती है,मुझसे मेरी ये हसरते 
साँसों के होते हुवे,मै ये ख़्वाब आधा कैसे छोड़ दू 
माना के कुछ टूटा सा है,ये नशेमन मेरी उल्फ़त का  
पर अहसास के इन तिनको को,बिखरा कैसे छोड़ दू  
ऐ खुदा वो कही भी रहे,बस खुश रहे इस जहा में
मै आऊ न आऊ तेरे दर पे,पर ये सजदा कैसे छोड़ दू 
  
नशेमन--घरटं 
तिनका--काडी 
कज़ा --मृत्यू 


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