कहा से आई हो,ये जुल्फ की छाव ले कर
मेरी हर शाम क्यों इतनी महका रही हो
मै तो हु दीवाना अपनी ही मंजिल का
क्यों धीरे धीरे मुझको मुझसे चुरा रही हो
मेरी हर शाम क्यों इतनी महका रही हो
मै तो हु दीवाना अपनी ही मंजिल का
क्यों धीरे धीरे मुझको मुझसे चुरा रही हो