सोचता हूँ के कितनी बार लिया होगा मैने नाम तुम्हारा
शायद उतना ही,जितनी साँसे जीया हू तुम्हे चाहने के बाद
और क्या जुस्तजू रही होगी,मेरी इन तरसती निगाहो को
और भला क्या देखना चाहेगी वो बेचारी,तुम्हे देखने के बाद
शायद उतना ही,जितनी साँसे जीया हू तुम्हे चाहने के बाद
और क्या जुस्तजू रही होगी,मेरी इन तरसती निगाहो को
और भला क्या देखना चाहेगी वो बेचारी,तुम्हे देखने के बाद
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