खामोश रखा जुबा को,और अश्क़ो को बहने न दिया
जला आतिश ऐ उल्फत में,और धुवे को उठने न दिया
खबर मेरी दीवानगी की फिर भी चली इस ज़माने को
मेरी आखो ने भेद खोला,मैंने तो लाख खुलने न दिया
जला आतिश ऐ उल्फत में,और धुवे को उठने न दिया
खबर मेरी दीवानगी की फिर भी चली इस ज़माने को
मेरी आखो ने भेद खोला,मैंने तो लाख खुलने न दिया
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