Saturday, July 26, 2008

...ढुन्ढ्ता रहा

कहने को तो फूल था मगर,ता-उम्र ताजगी ढुन्ढ्ता रहा
जलने को तो चिराग था मगर,हर पल रौशनी ढुन्ढ्ता रहा
दास्ता मेरे भी जीने की है लिपटी हुवी जुस्तजू की बाहों में
जीने को तो यु ही मैं जीता रहा,मगर जिंदगी ढुन्ढ्ता रहा

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