Wednesday, August 29, 2007

नूर

ये आलम-ए-निम् शब् और ये नूर कैसा
कही वो बे-पर्दा तो नही हुवे है ?

तबस्सुम

हुस्न लेके आया है तबस्सुम जिंदगी मे
फिर क्यों न जी भर के मुस्कुराऊ मैं

सुर्खी

क्यो उठाती हो सवाल इन आँखो की लाली पर
ये सुर्खी तेरे लबों की कहाँ सोने देती है मुझको

चैन

आज तो सो लू मैं जरा चैन से
सुना है वो जाग रहे है मेरे खयालों मे

अदा

तेरी अदाओं ने सिखाया है इस दिल को धड़कना,
खुदा करे तू यु ही जलवे लुटती रहे मेरे जीने के लिए

सिलसिला

एक जो तुझसे नजर मिली,फिर चलता रहा सिलसिला दर्द का
बुझते बुझते जल उठी है हर बार ये चिंगारिया

Saturday, August 18, 2007

सुकून

कंधे पे सर रख के झुल्फो मे खोने दो मुझको
यु कुछ देर लिपट के तुमसे सोने दो मुझको

इन्ही लम्हों के खातीर जी रहा था अब तक
जी भर के इस जिंदगी का होने दो मुझको

जुदाई

जीते जी कब जुदा होता है जिस्म खु से
नजर कब दूर रह सकी है आसू से
इश्क किया है जिसने वो कैसे करे इन्कार
दिल-ए-आशिक कब जुदा हुवा है आरजू से


छोड़ दो...

रहनो दो वो हुस्न मेरी तकदीर मे नही
मेरे ख्वाब मे तो है मगर मेरी ताबीर मे नही
हर रास्ते को कहा मिलती है मंजिल यहाँ पर
वो मेरे आगाज मे तो है मगर मेरी आख़िर मे नही

Wednesday, August 15, 2007

उम्मीद

मैं जर्रा इस जमीं का
तू परी किसी दुसरे आसमाँ की
फिर भी दिल मे उम्मीद है बाकी
के देखा है कही आसमाँ को जमी से मिलते हुवे

आरजू

हजारो ख्वाहिशे जगती है दिल मे एक तेरे ख़याल से
और आप है के पूछते हो के क्या आरजू है तुम्हारी

रुका हुवा वक्त

कहता है जमाना,भर जाता है हर जख्म मरहम-ए-वक्त से
पर,कैसे मिटे दाग-ए-दिल उनके रुका है वक्त जिनके लिए

Tuesday, August 14, 2007

गम न करेंगे

गम न करेंगे तू जो साथ है
गम न करेंगे तकदीर जो तेरे हाथ है
तू जो रूठे तो मना लेंगे
तू जो हँसे तो क्या बात है

खामोशी

चाहे ख्वाबों मे उनसे जितनी भी मुलाक़ात किजीये
दर्द-ए-दिल बढ़ जाता है जितने भी उनके ख़यालात किजीये
हर सवाल का जवाब ग़र खामोशी है यहाँ पर
फिर चाहे जिन्दगी से कितने भी सवालात किजीये

तो अच्छा था

वही मंजिले मुझको मिली, जो न मिलती तो बहोत अच्छा था
काटो के सीवा कालिया खिली,जो न खिलती तो बहोत अच्छा था
झूठी खुशियों का वादा लेकर सुबह आयी,रात ढलने के बाद
वो गम की शाम ही न ढलती तो बहोत अच्छा था

Saturday, August 4, 2007

शौक़-ए-शायरी

इन गेसुओ की काली घटा बन गयी है रोशनी मेरी
मदहोश अदा तेरी बन गयी है बेखुदी मेरी
तहय्युर-ए-हुस्न मे न आते थे लब्ज जबाँ पे,तेरे मिलने से पहले
शौक़-ए-शायरी बन गयी है अब जिंदगी मेरी

जिंदगी मिलती नही

जिंदगी मिलती नही और कमबख्त मौत भी आती नही
टूटता भी नही जाम खाली और शराब भी मिलती नही
अँधेरा ही अँधेरा है जिस जानिब देखू मैं
सुबह भी होती नही और रात भी ढलती नही

Thursday, August 2, 2007

दिल

बे-इन्तहा बे-वजह बेकाबू हो गया
ये दिल,दिल ना रहा खाना-ए-आरजू हो गया
एक पल भी अब चैन आये कहा से
मकसद-ए-जिंदगी यार की जुस्तजू हो गया