Thursday, February 4, 2016


मैं तो कैद हू मुद्दतो, उन दीवारों में
नसीब में जिनके, एक भी दरीचा नहीं 
कोई मंज़र मैं देखू,तो देखू भी कैसे 
मेरा मुकद्दर, इन दीवारों से ऊँचा नहीं 

जुस्तजू अपनेही वजूद की क्यों है मुझको     
है ये वो इम्तिहां,जिसका कोई नतीजा नहीं  

ज़िंदा हू मगर ऐ खुदा,बहोत दूर हू ज़िंदगी से,  
किसी को ज़िंदा रखने का ये तो तरीका नहीं 

@ मनिष गोखले ...   

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