Friday, October 9, 2015

ये हसीं शाम और ये महफ़िल,बहोत बहोत स्वागत है आप सभी लोगो का.

दोस्तों,जब जब हिंदी फिल्मो का ज़िक्र होता है,हम उस सुनहरे दौर को याद करते है. अमूमन १९५० से लेके १९७० तक के दौर को हम सुनहरा माना जाता है। ये वो दौर था, जिसमे,बहोत अच्छी कहानिया होती थी,एक से  बढ़ के एक कलाकार,परदे पर अपना किरदार निभाते हुवे नज़र आते थे.एक सादगी नुमा माहौल होता था.इसी की बदौलत, हम उन फिल्मो से अपने आप को जोड़ पाते थे.एक अपनाइयत का अहसास, हमे उन फिल्मों से होता था.संगीत एक बेहद अहम हिस्सा हुवा करता था. दिल को छू लेने वाली कुछ आवाज़े थी. अल्फ़ाज़ के वो बेहतरीन कारीगर थे जैसे साहिर,मजरूह,शकील,हसरत ,शैलेन्द्र और राजेन्द्र क्रिशन/आवाज़ और अल्फ़ाज़ को जोड़नाले वो आलातरीन संगीतकार थे.हम नौशाद साहब को याद करते है। हम सी रामचन्द्रजी को सलाम करते है शंकर जयकिशन,ओ पी नय्यर,मदन मोहन,रोशन,सचिन देव बर्मन ऐसे नाम हमारे दिल के करीब होते है.
दर-असल ये ऐसे लोग है,के जो हमारी जिंदगी का हिस्सा है.हमारी साँसों में बसनेवाले है. हमारी जिंदगी को रोशन करनेवाले है. हमारा भी फ़र्ज़ है की हम इनका तह ए दिल से अहतराम करे और करते भी है.कोई इनको दुवाए दे जाता है,कोई अपनी तक़रीर में बड़े अदब से इनका  ज़िक्र करता है ,तो कोई इनकी शान में एक किताब लिख देता है.

'सरगम के सितारे' ये ऐसी ही एक किताब है जो संगीतकारों की शान में लिखी गयी है और आज मंज़र ए आम पे आने के लिये बेताब है.
लेखक श्रीकांत देशपांडे यांच्या या पुस्तकाचं आज प्रकाशन होतंय।
संगीत आणि पत्रकारिता या क्षेत्रातील काही मान्यवर आज आपल्याला इथे पाव्हने म्हणून लाभलेले आहेत।
एक छोटासा स्वागत समारंभ(वेलकम ceremony) आपण करणार आहोत।

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