मुद्दते हो गयी है देखो सिमटते सिमटते
चलो हम आज ज़रा बिख़र के तो देखें
ज़र्रा ज़र्रा बन के कुछ आज़ाद हो जाये
हर सू इस जहाँ से ज़रा गुज़र के तो देखें
अब कोई आस नहीं है नयी उचाईयों की
किसी दिल की गहरायी में उतर के तो देखें
थक से गये है जो ग़मों से बचते बचते
कभी खुशियों से भी ज़रा मुकर के तो देखे
फ़िक्र अपने ही अश्क़ो की क्यों रहे हरदम
कभी दर्द किसी और की नज़र के तो देखें
दर ए खुदा पे सजदे,तो है रोज़ की कहानी
कभी बूढ़े मां बाप के कदमो में ठहर के तो देखें
हर सू --हर तरफ़
@ मनिष गोखले...
चलो हम आज ज़रा बिख़र के तो देखें
ज़र्रा ज़र्रा बन के कुछ आज़ाद हो जाये
हर सू इस जहाँ से ज़रा गुज़र के तो देखें
अब कोई आस नहीं है नयी उचाईयों की
किसी दिल की गहरायी में उतर के तो देखें
थक से गये है जो ग़मों से बचते बचते
कभी खुशियों से भी ज़रा मुकर के तो देखे
फ़िक्र अपने ही अश्क़ो की क्यों रहे हरदम
कभी दर्द किसी और की नज़र के तो देखें
दर ए खुदा पे सजदे,तो है रोज़ की कहानी
कभी बूढ़े मां बाप के कदमो में ठहर के तो देखें
हर सू --हर तरफ़
@ मनिष गोखले...
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