ख्वाब में देखी जो बहारे,हकीकत में है वो मुरझाई सी
अपनी थी ये दुनिया,अब नजर आती है वो हरजाई सी
पास नही है गर कुछ तेरे,तो साथ न देंगे तेरे साये भी
ढूंढे कैसे वजूद जिंदगी का,जो ख़ुद लगती है परछाई सी
Saturday, September 20, 2008
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2 comments:
kya baat hai bhut badhiya. jari rhe.
बहुत बढिया मुक्तक है।
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