Saturday, July 26, 2008

...ढुन्ढ्ता रहा

कहने को तो फूल था मगर,ता-उम्र ताजगी ढुन्ढ्ता रहा
जलने को तो चिराग था मगर,हर पल रौशनी ढुन्ढ्ता रहा
दास्ता मेरे भी जीने की है लिपटी हुवी जुस्तजू की बाहों में
जीने को तो यु ही मैं जीता रहा,मगर जिंदगी ढुन्ढ्ता रहा

Thursday, July 3, 2008

तुम आओगे क्या

बड़े नाज़ से सजाई है हमने,महफिल में तुम आओगे क्या
मिलने की खातिर दिल से मेरे,अपना दिल लाओगे क्या
कबसे तरस रही मेरी हसरते,हकीकत में बदल जाने को
ख्वाब से सजी इस जिंदगी को,हकीकत बनाओगे क्या