Sunday, May 25, 2008

दिल की सदा

दिखलायीं मोहब्बत ने हमे आख़िर तड़प की इन्तहाँ
लिखवाई आरजू-ए-यार ने हमसे एक दर्द की दास्ताँ
मालिक,क्या ये नही काफी,उनके वाकिफ हो जाने को
के,हर कतरा मेरे खून-ए-जिगर का दे रहा है उनको सदा

सदा-आवाज,दास्ताँ-कहानी

वाकिफ-पहचाना हुवा




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