लिखवाई आरजू-ए-यार ने हमसे एक दर्द की दास्ताँ
मालिक,क्या ये नही काफी,उनके वाकिफ हो जाने को
के,हर कतरा मेरे खून-ए-जिगर का दे रहा है उनको सदा
सदा-आवाज,दास्ताँ-कहानी
वाकिफ-पहचाना हुवा
This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.
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