Sunday, January 20, 2008

तकदीर

हर शाम बीती शब-ए-वस्ल की चाह मे
हर सुबह आयी मायूसी की आह मे
हकीकत हम-जमी न बन सकी कभी ख्वाब की
यू ही जिंदगी गुजरी तकदीर-ए-सियाह मे

शब-ए-वस्ल---मिलन की रात
तकदीर-ए-सियाह---काली तकदीर

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