Wednesday, September 9, 2015

ये बहती हवा जो तेरा आँचल उड़ा दे रही है
क्या कहे किसी शोले को वो हवा दे रही है
हर दर्द भूले जा रहा हूं मैं तो इस ज़माने के
मेरी नज़रे जो मुझे हर गम की दवा दे रही है
वो निगाहों का तबस्सुम,वो शर्म हलकी सी
मेरी दबी हसरतो को इक जुबां दे रही है
बेकरारी में मेरे कदम बढ़ न जाये कही
आहिस्तगी में जो पारसाई दगा दे रही है













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