सफिने इश्क के दर्या-ए-वक़्त में डूबने लगे है
महल उन ख्वाबो के मेरे आगे टूटने लगे है
जिनको समझ के फूल लगाके रखा है सीने से
वोही अब काटा बनके दिल को चुभने लगे है
Wednesday, July 21, 2010
Wednesday, July 14, 2010
क्या करे
इमकानात सफ़र के ही जो ना रहे
तो अब इंतजार-ए-हमसफ़र क्या करे
सु-ए-उफक-ए-उम्मीद भी देखे क्यों
डोर सासों की रही मुख़्तसर क्या करे
इमकानात-शक्यता
उफक-क्षितिज
मुख़्तसर-थोड़ी(Short)
तो अब इंतजार-ए-हमसफ़र क्या करे
सु-ए-उफक-ए-उम्मीद भी देखे क्यों
डोर सासों की रही मुख़्तसर क्या करे
इमकानात-शक्यता
उफक-क्षितिज
मुख़्तसर-थोड़ी(Short)
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