मुझे तुमसे नफरत है,ऐसा कुछ भी नहीं
दिल को एक गैरत है,ऐसा कुछ भी नहीं
बाकी है यादे तेरी,मेरे मजलिस-ए-दिल में
ये दौर-ए-खिलवत है,ऐसा कुछ भी नहीं This is my own shayari.Thanks 2 Rafi sahab,he directly or indirectly taught me to do a shayari.i hope you will like it.