हम भी हस लेते,गर ना रूठा अपना मुक़द्दर होता
दो पल गुजारना चैन के,हम को भी मयस्सर होता
शम्स-ए-मसर्रत ने आजकल,मुह फेरा है हम से वर्ना
छोटासा आशियाँ ये अपना भी,कुछ तो मुनव्वर होता
मयस्सर-मुमकिन/हासिल
मुनव्वर-प्रकाशमान
मसर्रत-ख़ुशी,सुख
Tuesday, December 14, 2010
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